नरेंद्र भट -- वडील वैद्य सोमेश्वर भट बाबत
शनिवार, 29 नवंबर 2014
रविवार, 19 अक्टूबर 2014
आरोग्य नीति-- आरोग्य भारती के लिये
आरोग्य नीति
1. व्यक्ति
स्वास्थ्य रक्षा- योग व्यायाम.
बिमारी का प्रबधर्म (क्या करें, क्या न करें).
आहार- विहार.
आचार- विचार.
जीवन- दर्शन.
स्वाध्याय.
अध्यापन
सहभाग- यथा लेखन
घरेलू उपाय.
दैनंदिन आदनें.
दिनचर्चा- ऋतुचर्चा.
विभिन्न pathy का विचार.
2.परिवार
दाम्पन्य जीवन- आनंद, सहभाग, सहयोग, अधिकार.
संतती- विचार, गर्भसंस्कार. (अभिमन्यु प्रयोग).
विहार- छुटियाँ- स्वास्थ्य प्रबंचन में.
विचार- बालक, वृध्द, स्त्रियाँ, युवा.
विस्नारित परिवार संबंध वंशावली ज्ञान.
3.गांव- शहर
आपका स्वास्थ्य- आपका भौगोलिक परिवेश- क्या है संबंध- लेन- देन, व्यापार. जीवन- निर्वाह.
स्वास्थ्य के assets कृषि, गो, वृक्षसंपदा.
पर्यावरण- जंगल, पर्वत
पानी के स्त्रोत
उहाम- इकाइयाँ.
कचरा- स्वच्छता
प्रदूषण
लोककला- लोकज्ञान (वैदू)
Tribal Knowledge.
रुहियाँ.
4.समाज व संस्थाएँ
स्कूल-लाइब्रेरी, स्वच्छता, सुरक्षा.
कला- क्रीडा.
कोर्स की रचना- शिक्षक.
अभ्युदय- संतोष- कौशल रोजगार.
आयुर्वेद
इंदस्ट्रियल हेल्थ- हझार्ड लेखन.
5.राष्ट्र
आरोग्य नीति- कृषि, जल, प्राकृतिक संपदा- दोहन.
पहाड-वन-वृक्ष- मिट्टी- जल स्त्रोत कीटे आरोग्य- रक्षा में भूमिका- पर्यावरण नीति
शिक्षा- कला- क्रिडा
संस्कृत ग्रंथ संपदा
पाठ्यक्रम + पूरक पाठ्यक्रम.
संस्कृति- भाषानीति.
लेखन- TV-
उद्यम नीति
युवा- विचार- युवा- स्पंदन
मनोवृत्ति में- आरोग्य परिवार.
स्त्रियाँ- सामाजिक स्वास्थ्य- दहेज, अपराध.
Public Health Systems- Communicable diseases.
स्वास्थ्य- सांख्यिकी
Non- Communicable Disease- Life- Style Management.
Non- Communication- TV/Mobile.
परराष्ट्र
Farmacy Companies.
Spreading संस्कृत, योग, आयुर्वेद.
IPR- WHO- MACRO- LEVEL
आयुर्वेद,+ पशु- आयुर्वेद- +वृक्ष आयुर्वेद.
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रविवार, 5 अक्टूबर 2014
गव्य-चिकित्सा संवादशाला के लिये दर्शिका -- मुंबई दि 30-06-2013
प्रकृति
पहाड, नदियाँ, वृक्ष,जलवायु, खनिज
वनचर, ग्राम-पशु, मनुष्य
ज्ञानसाधना, प्रयोगशीलता,उत्पादन, संपन्नता
समाज-व्यवस्था – वनवास,ग्रामवास, नगरवास
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ग्राम-रचना
भारतीय समाज-व्यवस्था का केंद्र है गाँव। अधिकांश जनसंख्या के निवास, उत्पादन एवं चरितार्थ का स्थान
गाँवोंकी भौगोलिक रचना में केंद्र पर ग्रामस्थान है जो निवासके लिये है। इसके चहुँ ओर खेत हैं, उनके आगे चराई के लिये प्रधिकृत जमीन, उसकेआगे वह जंगल जो उस गाँवका माना जाता है– अर्थात इस जंगलके तमाम उत्पादोंपरगाँव का उपभोग होगा और इस जंगलके रखरखाव की जिम्मेदारी गाँव की होगी। यह प्रायःअरण्य और चराई के बीच बफर-झोन का काम करता है और इसमें बडे वन्यपशू नही होते। ये प्रायः समतल भी होते हैं।
इसके परे होंगे वे अरण्य जिनपर किसी एक गाँवका अधिकार नहीहोगा – रखवाली का जिम्मा राजा का होगा। दुर्गम पहाडियाँ, नदियों व झरनों के उगमस्थान, वन्यपशुओंका निवास, साथही कतिपय वनवासी ऋषियोंके गुरुकुल, आश्रम यातपःस्थली।
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आश्रम जीवन
अर्थात शोध व विद्यादानके संस्थान
वनवासी -- ये थे गुरुकुल वासियोंके साथी
ग्रामवासी – ये थे उनशोधोंके पूरक कारीगर और उत्पादक
नगरवासी – ये थे राज्यकर्ता (व्यवस्था-रक्षक) या व्यापारी
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आश्रम जीवन
प्रकृति के साथ एकतानताबनाये हुए
पहाड, वन्यजीव, जंगल,नदियाँ – बचाने हेतु आवश्यक जीवन पद्धति
आवश्यक नीतिमूल्य -अपरिग्रह, शांति, मैत्री, विनामूल्य विद्यादान, प्रयोगशीलता, तप, सत्यवादिता(ज्ञानप्रसार के लिये अनिवार्य), निर्भयता, समता (विद्यादानमें सबसे एक जैसाव्यवहार – उदा. कृष्ण-सुदामा)
देवराई ऐसे जंगल जहाँ से कोई भीकुछ भी नही उठायेगा
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ग्राम-जीवन
कृषि संस्कृति – अन्नंबहु कुर्यात् तद् व्रतम् ।
एक बीजसे हजारोंकी उत्पत्ति करनेवाला एकमेव व्यवसाय
आवश्यक नीतिमूल्य –अस्तेय (अचौर्य), धैर्य, सहयोग, कौशल्य, पशुपालन, कला, कारीगरी,
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नागरी जीवन
राज्यसत्ता का केंद्र,व्यापार – केंद्र,
आवश्यक नीतिमूल्य –आश्रमों का अनुशासन शिरोधार्य, शौर्य, नीतिमानता, दंड-व्यवस्था, न्याय, शुद्ध-व्यापार, कला की परख व कलाको प्रोत्साहन,
वनजीवनकी की ओर वापसी - नागरी एवं ग्रामीणइलाकोंसे हर बालकका विद्याग्रहण के लिये वनों में निवास
वानप्रस्थमें वन-निवास व ज्ञानसाधना -- फिर संन्यास
संन्यासीको लौटना है ग्रामों और नगरोंमें -- घूमघूमकर ज्ञानप्रचार के लिये
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यह सारा विवेचन आजकी संवादशालासे कैसे संबंधित है
गव्य चिकित्साका सूत्र है कि मनुष्यके सारे रोगोंका निराकरण पंचगाव्योंसे होता है – दूध, दही, घृत,गोमूत्र व गोबर ।
ऐसी चिकित्सामें गायके स्वास्थ्यका विचार अवश्यंभावी है
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आयुर्वेदके अनुसार गव्योंके लाभ की 4 शर्ते हैं
कि गाय जंगलमें चरनेवालीहो ताकि उसके खाद्यान्न में हर प्रकारकी वनस्पतियाँ हों – खूँटेसे बाँधकर रखी गाय अप्रभावी है
आजकी धवलक्रांतिमें गायको एक मशीन माना जाता है -- चेतन प्राणी नही । अतः सलाह होती है कि गायको कमसे कम व्यायाम दो ताकि उसकी ऊर्जा केवल दूध बनानेमें लगे। यह गव्य चिकित्सा दृष्टिसे अलग है।
दूसरी शर्त – कि बछडा या बाछी गायका दूध पीकर पूर्णतया तृप्त हो तभी गायका दूध मनुष्य के लिये लिया जा सकता है।
तीसरी शर्त कि गायको सर्वदा यह संज्ञान हो कि वह आपके परिवारकी सदस्य है।
चौथी शर्त – गायका खाना कितना विशुद्ध या फिर पोल्यूटेड है।
और अब तो विदेशी नस्लोंसे बननेवाली प्रजातियोंके दूधके प्रोटीन पर भी प्रश्नचिह्न है। फिर ऐसी गायों के गव्य से चिकित्सा कैसे हो सकती है।
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तो आजके विवेचन का सारांश इतना ही है कि गव्य-चिकित्सा की विधी कारगर होनेकी आवश्यक शर्त है कि हम अपने वनोंके पुनरुत्थानपर ध्यान हैं।
देशमें केवल 13 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित है जो कि 33 प्रतिशत होना चाहिये।
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समग्र नीति के लिये
वनसंपदा का संवर्द्धन
गोपालनकी सरकारी नीतियोंमें सुधार
शोध प्रक्रिया में जुट जाना
दूध व्यवसाय में घुसी आरोग्य-विघातक प्रवृत्तियों पर अंकुश
देशी गोवंशके माध्यम से गायोंकी वस्ल में सुधार
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RV1.4 Bounties from a cowगौपालन से उपलब्धियां
मधुच्छन्दा वैश्वामित्र: । इन्द्र: । गायत्री ।
Creates a civilized society
सभ्य समाज बनता है
1.सुरूप कृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ।।1.4.1
Daily efforts in service of good milk giving cows bless us with beautiful bounties.
प्रति दिन प्रचुर दुग्ध प्रदान करने वाली गौवों की सेवा से सुन्दर समाज का विकास
होता है।
Cows are knowledge enhancers
गौ बुद्धि बढ़ाती है
2. उप नः सवनागहि सोमस्य सोमपाः पिब । गोदा इद्रेवतोमदः ।। ऋ 1.4.2
Cows give our vision to make knowledge creating hubs that increase our knowledge resource, makes us more enterprising to be more prosperous and happy.
गौवों से दिव्य चक्षु मिलते हैं, गौ पालन से पुरुषार्थी स्वभाव बनता है, जो सुख और संपन्नता लाता है ।
Facilitates Meditation
परमेश्वर का साक्षात्कार होता है
3. अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम् । मा नो अति ख्य आगहि ।। 1.4.3
Makes us hear the voice of our conscience in Meditation
ध्यानवस्था में हर विषय पर सुमति हमारे हृदय में अंतरमन में ही मिलती है. हम अपने अंतर्मन की सुमति का कभी तिरस्कार न करें.
Best Counsel
4.परेहि विग्रमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम् । यस्ते सखिभ्य आवरम् ।। 1.4.4
May we learn to never ignore the voice of our conscience
हमारी अंतर आत्मा की आवाज़ ही सब से अधिक हितकारी सलाह सिद्ध होती है.
Enables good articulation
5.उत ब्रुवन्तु नो निदो निरन्यतश्चिदारत । दधानेन्द्र इद दुव: ।।1.4.5
Our speech becomes sweeter and civil
वाणी सदैव उत्तम भद्र बोलें कभी भी अभद्र निंदात्मक अपशब्द न बोलें
Peace loving temperament
6. उत नो सुभगाँ अरिर्वोचेयुर्दस्म कृष्टय: । स्यामेदिन्द्रस्य शर्मणि।। 1.4.6
A change is brought about in our temperament to earn our living by hard work and fair means. Our prosperity and conduct forces even our enemies to be envious.
हमारा उत्तम श्रमशील जीवन यापन द्वारा प्राप्त सौभग्य समृद्धि तथा भद्र व्यवहार हमारे शत्रुओं को भी हमारी प्रशंसा करने के लिए बाध्य करें.
Makes us Virile & Productive
7. एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम् । पतयन् मन्दयत्सखम् ।1.4.7
Virility is established in our physical body and temperaments to bring forth good progeny and be good achievers in life.
वीर्य वृद्धि से पौरुष द्वारा उत्तम संतान और सोम वृद्धि से जीवन मे उन्नति समृद्धि प्राप्त कराती है.
Removes obstacles to prosperity
अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव: । प्रावो वाजेषु वाजिनम्।। 1.4.8
Our ability is strengthened to perform thousands of tasks to beat all obstacles in the path of our prosperity.
उत्पन्न सोम द्वारा विजय श्री प्राप्त करने के लिए हम शतक्रतु – सेंकड़ों शुभ कार्य करने वाले बनते हैं .
All round Prosperity
तं त्वा वाजेषु वाजिनं वाजयाम: शतक्रतो । धनानामिन्द्र सातये ।।1.4.9
Cow develops the inventive temperament to accomplish innumerable techniques required for improving daily life.
(शतक्रतो) असंख्य वस्तुओं के विज्ञान को रखने वाले (धनानाम्) पूर्ण विद्या और सामर्थ्य को सिद्ध करने वाले पदार्थों का (सातये) अच्छे प्रकार सुख भोग करने के लिए (वाजेषु वाजिनम्) प्राप्त करने में समर्थ (त्वा वाजयाम:) नित्य प्रति जानने और प्राप्त करने के प्रयत्न करते हैं.
Cows provide Divine Blessings
प्रभु कृपा रहती है
यो रायो3वनिर्महान्त् सुपार: सुन्वत: सखा । तस्मा इन्द्राय गायत।। 1.4.10
Makes possible divine blessings by friendly role of the Almighty/
जो असंख्य धनधान्य से समृद्धि देने वाला परमेश्वर है वह एक सखा के रूप में ( गोसेवक के ) साथ रहता है, उसी का गुणगान सब करते हैं.
शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
लोकसंस्कृतिबाबत
लोकसंस्कृतिबाबत
Sandhya Soman -- फेसबुकवर
दहीहंडीवर त्यांचे ठणठणून आणि आपले तणतणून झाले नुकतेच.
पण महाराष्ट्रात, विशेषतः मुंबई-कोकण भागामध्ये हा दहीहंडीचा उत्सव आला कुठून?
तर 'आभीरायण' ह्या पुस्तकानुसार त्रैकूटकांच्या भागवत धर्माच्या श्रद्धेतून हा उगम संभवतो.
आता हे त्रैकूटक कोण?
नाशिकच्या आभीर साम्राज्याचा अंत साधारण इ.स. ४१४ च्या आसपास झाला. त्यांचाच नातेवाईक आणि मांडलिक किंवा प्रांताधिकारी असलेला इंद्रदत्त. हा त्रैकूटकांच्या या घराण्याचा मूळ पुरुष.(इ.स. ४१४ ते ४४०)
अनिरुध्दपूर हे त्रैकूटकांच्या राजधानीचे ठिकाण. हे म्हणजे आत्ताची आपली अंधेरी म्हणे.
त्रैकूटक राजे स्वतःला सामर्थ्यवान असे अपरांताचे स्वामी मानतात. अपरांतातील दुर्ग, नगरे आणि समुद्र यांचे ते संरक्षक आहेत असे सांगतात.
हा पहिला इंद्रदत्त त्याच्या नृत्यसंगीताच्या आवडीने कोकणच्या जनमानसात,लोकगीतात स्थान मिळवून आहे असे लेखक गंगाधर पारोळेकर म्हणतात.
'आंबा पिकतो..रस गळतो..कोकणचा राजा झिम्मा खेळतो" यातील कोकणाचा राजा म्हणजेच हा इंद्रदत्त. आभीर पार आधीपासूनच आपला आनंद नृत्यातून प्रकट करत असत. हा राजाही असा लोकगीतात रस भरून गेला.
मला आनंद हा की ह्या झिम्म्याच्या गाण्याचा उगम मिळाला.
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मेधा वाडदेकर -- फेसबुकवर
श्रावण महिना सुरु आहे, श्रावणातल्या पारंपारिक पद्धती पैकी एक म्हणजे, सवाष्णीना आणि मुलं बाळं असलेल्या सवाष्णीना (उदा. मंगळागौरी, शुक्रवाराच्या जीवन्तीची पूजा इ. ) बोलावणे... ह्या सगळ्या पद्धती लहानपणापासून बघितल्या आहेत आणि माहिती झाल्या आहेत.. पण खरं सांगायचं तर कधीही विचार नाही केला त्यावर.. आता अचानक विचार आला आणि....
सवाष्ण जेवायला घालायचं तर्कशास्त्र काही केल्या कळत नाहीये. पारंपरिक चौकटीत राहून विचार केला तर एक सवाष्ण- जिचा पालनपोषण करणारा नवरा जिवंत आहे,तिला जेवायला बोलावून ‘पुण्य’ मिळविण्याचा हा उफराटा प्रकार कुठला? त्यापेक्षा नवऱ्यामागे हिमतीने जगून मुलांना वाढविणाऱ्या एकाकी विधवेला मान देऊनही पुण्य मिळवता येणार नाही का? आणि विधवाच कशाला, एकाकी जीवन जगणाऱ्या परित्यक्ता, प्रौढ अविवाहिता किंवा घटस्फोटिता यांना यात सहभागी करून घेतलं, त्यांची सुखदु:खं जाणून घेतली, तर चालण्यासारखं नाही का? मुळात स्त्रीच्या वैवाहिक स्थितीनुसार तिची ‘प्रत’ ठरविण्याचा अट्टहास आता कालबाह्य झालाय असं कुणालाच वाटत नाहीये का? ती सधवा आहे की विधवा आहे, की अविवाहित आहे, यापलीकडे जाऊन- ती माणूस म्हणून कशी आहे, याला काही महत्त्वच नाही का? हेकेखोर, मत्सरी आणि वाईट मनाच्या (पण मुलंबाळं असलेल्या) सवाष्णीला मान देऊन पुण्य मिळतं; आणि मनानं चांगल्या असलेल्या, पण या वर्गात न बसणाऱ्या स्त्रीला यात सहभागी करून घेतलं तर पुण्य जोडलं जात नाही, हा विचार अवास्तव नाही का?
Sandhya Soman -- फेसबुकवर
दहीहंडीवर त्यांचे ठणठणून आणि आपले तणतणून झाले नुकतेच.
पण महाराष्ट्रात, विशेषतः मुंबई-कोकण भागामध्ये हा दहीहंडीचा उत्सव आला कुठून?
तर 'आभीरायण' ह्या पुस्तकानुसार त्रैकूटकांच्या भागवत धर्माच्या श्रद्धेतून हा उगम संभवतो.
आता हे त्रैकूटक कोण?
नाशिकच्या आभीर साम्राज्याचा अंत साधारण इ.स. ४१४ च्या आसपास झाला. त्यांचाच नातेवाईक आणि मांडलिक किंवा प्रांताधिकारी असलेला इंद्रदत्त. हा त्रैकूटकांच्या या घराण्याचा मूळ पुरुष.(इ.स. ४१४ ते ४४०)
अनिरुध्दपूर हे त्रैकूटकांच्या राजधानीचे ठिकाण. हे म्हणजे आत्ताची आपली अंधेरी म्हणे.
त्रैकूटक राजे स्वतःला सामर्थ्यवान असे अपरांताचे स्वामी मानतात. अपरांतातील दुर्ग, नगरे आणि समुद्र यांचे ते संरक्षक आहेत असे सांगतात.
हा पहिला इंद्रदत्त त्याच्या नृत्यसंगीताच्या आवडीने कोकणच्या जनमानसात,लोकगीतात स्थान मिळवून आहे असे लेखक गंगाधर पारोळेकर म्हणतात.
'आंबा पिकतो..रस गळतो..कोकणचा राजा झिम्मा खेळतो" यातील कोकणाचा राजा म्हणजेच हा इंद्रदत्त. आभीर पार आधीपासूनच आपला आनंद नृत्यातून प्रकट करत असत. हा राजाही असा लोकगीतात रस भरून गेला.
मला आनंद हा की ह्या झिम्म्याच्या गाण्याचा उगम मिळाला.
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मेधा वाडदेकर -- फेसबुकवर
श्रावण महिना सुरु आहे, श्रावणातल्या पारंपारिक पद्धती पैकी एक म्हणजे, सवाष्णीना आणि मुलं बाळं असलेल्या सवाष्णीना (उदा. मंगळागौरी, शुक्रवाराच्या जीवन्तीची पूजा इ. ) बोलावणे... ह्या सगळ्या पद्धती लहानपणापासून बघितल्या आहेत आणि माहिती झाल्या आहेत.. पण खरं सांगायचं तर कधीही विचार नाही केला त्यावर.. आता अचानक विचार आला आणि....
सवाष्ण जेवायला घालायचं तर्कशास्त्र काही केल्या कळत नाहीये. पारंपरिक चौकटीत राहून विचार केला तर एक सवाष्ण- जिचा पालनपोषण करणारा नवरा जिवंत आहे,तिला जेवायला बोलावून ‘पुण्य’ मिळविण्याचा हा उफराटा प्रकार कुठला? त्यापेक्षा नवऱ्यामागे हिमतीने जगून मुलांना वाढविणाऱ्या एकाकी विधवेला मान देऊनही पुण्य मिळवता येणार नाही का? आणि विधवाच कशाला, एकाकी जीवन जगणाऱ्या परित्यक्ता, प्रौढ अविवाहिता किंवा घटस्फोटिता यांना यात सहभागी करून घेतलं, त्यांची सुखदु:खं जाणून घेतली, तर चालण्यासारखं नाही का? मुळात स्त्रीच्या वैवाहिक स्थितीनुसार तिची ‘प्रत’ ठरविण्याचा अट्टहास आता कालबाह्य झालाय असं कुणालाच वाटत नाहीये का? ती सधवा आहे की विधवा आहे, की अविवाहित आहे, यापलीकडे जाऊन- ती माणूस म्हणून कशी आहे, याला काही महत्त्वच नाही का? हेकेखोर, मत्सरी आणि वाईट मनाच्या (पण मुलंबाळं असलेल्या) सवाष्णीला मान देऊन पुण्य मिळतं; आणि मनानं चांगल्या असलेल्या, पण या वर्गात न बसणाऱ्या स्त्रीला यात सहभागी करून घेतलं तर पुण्य जोडलं जात नाही, हा विचार अवास्तव नाही का?
मेधा आपल्या समाजात विधवा किंवा एकाकी पडलेल्या स्त्रियांसाठी कोणतीही सामाजिक सपोर्ट सिस्टम नसणे ही चूकच. ती निर्माण करण्याचा प्रयत्नही मोठ्या प्रमाणात केला जातो परंतु तो चिरंतन ठरलेला नाही तर त्यावर अजून जास्त विचारपूर्वक प्रयत्न झाले पाहिजेत. मात्र वरील सवाष्ण पद्धतीचा एक फायदा असावा असे मला वाटते. आपल्याकडे आयुर्वादाच्या ज्ञानाचे अतीव विकेंद्रीकरण करण्याची पद्धत होती व माझ्या मते त्यामुळेच तो इतका टिकला. ज्ञानाचे छोट्या छोट्या प्रमाणांत विभाजन करायचे आणि तेवढा वाटा जतन करण्यासाठी कोणाकडे तरी सोपवून द्यायचा. नवीन लग्न झालेल्या मुलीने मुले-बाळे असलेल्या स्त्रीचे अनुभव जाणून घेण्याची ती एक सुयोग्य व्यवस्था होती कदाचित. प्रत्येक गोष्टीचे जस्टिफिकेशन करायचेच असा माझा विचार नाही. उलट खोलवर विचार करून त्यातले ज्ञान समजून घेण्यात आपली आजची पिढी मागे पडू नये हा तो विचार आहे कारण तसे झाले तर आपला ज्ञानाचा साठा व झरा आटेल ज्याची आज जगासमोर आपल्याला गरज आहे. तो असा काळ होता जेंव्हा ऑबस्ट्रेटिक्स आणि गायनॉकॉलॉजी कॉलेज मधे शिकण्याची परंपरा नव्हती. अशा वेळी नवीन लग्नाच्या मुलीला थोडके पण अत्यावश्यक ज्ञान मिळण्याची ती एक चांगली संधि असू शकते. थोडा हा ही विचार करू या, कारण तुमचा सामाजिक विचार करण्याचा मंच आहे. आयुर्वेदाचे थोडे थोडे ज्ञान आजीच्या बटव्याच्या रुपाने स्त्रीकडे असणे हा तिच्या एमपॉवरमेंटचा एक मोठा स्रोत होता असे मला वाटते. कदाचित तुमचा मंच या विषयावर एखादी वक्तृत्व स्पर्धा घेऊ शकेल.
रविवार, 6 जुलाई 2014
PROJECT ANANTHA -biodiversity
Madan Thangavelu <madan.thangavelu2@gmail.com>
ja_yaar@yahoo.com,
PROJECT ANANTHA OF THE GOVERNMENT IS A NEW NAME OF DISTRICT ECONOMIC
AND ENVIRONMENT DEVELOPMENT (DEED) PLAN WHICH WAS DEVISED AND
RECOMMENDED FOR IMPLEMENTATION IN JHAJJAR DISTRICT WAY BACK IN 2010
It is important to define how the conservation and/or development
efforts for protection of rich agri-biodiversity of different locales
of the the world is to be achieved. District Economic and Environment
Development (DEED) Plan was mooted as a model for that to Planning
Commission of India by Dr Jagveer Rawat in May, 2010, which was
recomended for implementation to the Chief Secretary of Hrayana on
June1, 2010 itself. This Model has given rise to PROJECT ANANTHA as it
is now being tried in ANANTHPUR district of Andhra Pradesh as the
state government of Haryana did not respond despite clearly expressed
will of the Planning Commission to implement the Model with all funds
as a pilot in Jhajjar district of the state which incidentally falls
in Lok Sabha Constituency of son of the Chief Minister. DEED Plan may
be applicable for example how primary producers of Haryana could have
benefitted if it would have utilised tools of Rice Genome for devising
tools of identification of genuine Basmati varieties as well as
similar tools of testing consignments of Indian Basmati from
biological and chemical impurities? Such things are required now by
Basmati Commodity Group (BCG) to strengthen the position of primary
producers of Basmati varieties. It is to be mentioned that The
Federation of Indian Chamber of Agriculture, Trade and Services
(FICATS) is working to launch important commodity groups in forms of
Commodity Councils under the aegis of FICATS, which would have its
branches at State and District levels, namely, State Primary
Producers' Institute (SPPI) and District Primary Producers' Institutes
(DPPI), respectively
ja_yaar@yahoo.com,
Jayant Singh ajay sahai K C Supekar | |||
PROJECT ANANTHA OF THE GOVERNMENT IS A NEW NAME OF DISTRICT ECONOMIC
AND ENVIRONMENT DEVELOPMENT (DEED) PLAN WHICH WAS DEVISED AND
RECOMMENDED FOR IMPLEMENTATION IN JHAJJAR DISTRICT WAY BACK IN 2010
It is important to define how the conservation and/or development
efforts for protection of rich agri-biodiversity of different locales
of the the world is to be achieved. District Economic and Environment
Development (DEED) Plan was mooted as a model for that to Planning
Commission of India by Dr Jagveer Rawat in May, 2010, which was
recomended for implementation to the Chief Secretary of Hrayana on
June1, 2010 itself. This Model has given rise to PROJECT ANANTHA as it
is now being tried in ANANTHPUR district of Andhra Pradesh as the
state government of Haryana did not respond despite clearly expressed
will of the Planning Commission to implement the Model with all funds
as a pilot in Jhajjar district of the state which incidentally falls
in Lok Sabha Constituency of son of the Chief Minister. DEED Plan may
be applicable for example how primary producers of Haryana could have
benefitted if it would have utilised tools of Rice Genome for devising
tools of identification of genuine Basmati varieties as well as
similar tools of testing consignments of Indian Basmati from
biological and chemical impurities? Such things are required now by
Basmati Commodity Group (BCG) to strengthen the position of primary
producers of Basmati varieties. It is to be mentioned that The
Federation of Indian Chamber of Agriculture, Trade and Services
(FICATS) is working to launch important commodity groups in forms of
Commodity Councils under the aegis of FICATS, which would have its
branches at State and District levels, namely, State Primary
Producers' Institute (SPPI) and District Primary Producers' Institutes
(DPPI), respectively
गुरुवार, 1 मई 2014
***आरोग्य नीति बाबत 10 मुख्य मुद्दे
आरोग्य नीति बाबत 10 मुख्य मुद्दे
1. भारतकी पारंपारिक स्वास्थ्य रक्षा तथा उपचार पद्धति भारतीय जलवायु, सांस्कृतिक परिवेश, तथा निसर्गदत्त साधनसंपत्तिके अनुकूल है साथ ही इसका सूक्ष्म ज्ञान विभिन्न प्रकारसे और विभिन्न परिमाणोंमें देशके लोकमानस और लोकज्ञानसे जुडा है । अतः स्वास्थ्यनीतिमें भारतीय पद्धतिका भारी प्रचलन न केवल उपयोगी है वरन इसके बिना हम जनताकी आरोग्यविषयक जरूरतें पूरी नही कर सकते। भारत जैसे बडे देशकी और अत्यंत विषमताओंसे भरे समाजकी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतोंके लिये केवल एलोपथी का माध्यम नितान्त अपर्याप्त है इस बातको स्वीकार करना होगा। सभी प्रणालियोंसे मिलाजुला लाभ उठाया जा सके ऐसी नीति अपनानी होगी तभी संपूर्ण लोकसंख्याके लिये आवश्यक स्वास्थ्य सुरक्षा दी जा सकेगी -- Attitudinal Change for Holistic Health Management
2. स्वास्थ्य-सुरक्षाके संबंधमें प्रत्येक व्यक्तिके स्वयंके ज्ञान एवं अनुशासनका महत्व अनन्य है, अतः इस बातको भी स्वीकारना होगा कि स्वास्थ्य-सुरक्षा का आरंभ शिक्षा व्यवस्थासे होता है। शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति की स्व-आरोग्यसंबंधी शिक्षा तथा दूसरोंकी स्वास्थ्य रक्षाके लिये आवश्यक वैद्यकीय शिक्षा दोनोंकी बाबत सुयोग्य दिशा परिवर्तन की आवश्यकता है -- इसे ध्यानमें रखते हुए नई आरोग्य-रक्षक शिक्षा नीति बनानी होगी। यह विषय इतना व्यापक है कि इसी विषयके अलगसे 10 बिंदु बनाने होंगे। Policy changes in Education
3. देशमें आरोग्यसंबंधी रिसर्च अपर्याप्त और भारतीय पद्धतिसंबंधी रिसर्च दुर्दशाग्रस्त है -- इन दोनोंको सुधारनेकी योजनाएँ आवश्यक है। Research Needs
4. देशमें आरोग्यसंबंधी जो सांंख्यिकी एकत्रित की जाती है उसके उद्देश्य एवं उद्देश्य-पूर्ति पर विशेष ध्यान देना होगा तथा स्थानिक निकायोंमें सांख्यिकी-अध्ययन एवं इसपर आधारित स्थानीय जरूरतोंको पूरी करनेवाली नीतियाँ अपनानी होंगी जो आज नही हो रहा। इस प्रक्रियामें विद्यार्थी तथा शोधविद्यार्थियोंका बडा सहभाग आवश्यक होगा। Statistical analysis capabilities and their utilisation for local-level scheme variations
5.आजके उपलब्ध अस्पतालोंमें प्रायोगिकता से आरंभ कर भारतीय प्रणालीकी सिद्धता आधुनिक पॅरॅमीटरसे परखनेसंबेधी प्रयोगोंका आयोजन अत्यावश्यक है। इसके बिना दोनों प्रणालियोंका तालमेल नही बैठाया जा सकता जिसकी चर्चा पहले मुद्देमें की गइ है। Experiment-based synthesis of all systems for Holistic Health Management
6. चूँकि आरोग्य-रक्षा हेतु व्यक्तिगत ज्ञान व अनुशासनके माध्यमसे पचास प्रतिशत जनसंख्याकी निरोगिताको बचाया जा सकता है अतः योग, आहार-प्रणाली आदि निरोगिता-रक्षक योजनाओंको सम्मान, सुविधा एवं बीमाके साथ जोडा जाना चाहिये। इससे वे सभी जन लाभान्वित होंगे जो बिमार नही होते। इस तुलनामें आजकी सभी योजनाओंका लाभ केवल बीमार पडनेसेही मिलता है। एक गलत अर्थनीति भी इस मुद्देपर टिकी है जिसमें अधिक बिमारीको अधिक जीडीपी और अधिक विकासकी संज्ञा दी जाती है। इसी मुद्देपर सरकारी संस्थानोंमें आर्थिक घोटाले भी होते रहते हैं । positive benefits for good health - change the unwellness-based definition of GDP
7. सरकारकी कृषि नीति तथा पर्यावरण-नीति दोनोंही भारी मात्रामें प्रदूषणको बढावा दे रही हैं जिस कारण अधिकाधिक बिमारियाँ फैल रही हैं। रासायनिक खाद रहित कृषि और देशी वंशकी गायें-बकरियाँ-मुर्गियाँ (पशुधन) के बिना बिमारियाँ पढती रहेंगी। इसी प्रकार आजकी नगर-विकास नीतियाँ भी जीवनको तनाव-ग्रस्त बना रही हैं जो रोगका बडा कारण है। नगर-विकासकी दिशा बदले बगैर इन तनावों एवं बिमारियोंसे बच पाना कठिन है। Paradigm Shift needed in policies for Eco-conservation, Agriculture, Animal Husbandary, and Urbanisation,
8. कानून में 3-4 दिशाओंमें परिवर्तन आवश्यक है - आजका कानून आयुर्वेदको बंधे पानीकी तरह बाँधकर रखना है और किसी भी नये रिसर्छकी संभावना से वंचित करता है। आजका कानून केवल ठप्पाघारी ( डिग्री आधारित) प्रॅक्टिसकी अनुमति देता है -- इसे गुरुकुल आधारित बनाना होगा। साथ ही हमारा आयपीआरका कानून पारंपरिक सामाजिक ज्ञानको विश्व-स्तरीय आक्रमणसे बचानेमें पर्याप्त रूपसे सक्षम नही है। Many legal changes needed, Urgent attemtion to IPR Laws to safeguard the interest of our traditional knowledges
9. स्वास्थ्यविषयक प्रचार-प्रसार हेतु पुस्तकें व इलेक्ट्रॉनिक माध्यमोंको भारतीय भाषाओंमें उपलब्ध कराना। विशेषतः भारतीय पद्धतियोंका ज्ञान जो इतस्ततः बिखरा पडा है उसका संकलन एवं अगली पीढियोंके लिये जतन आवश्यक है। Books, Clip-banks in regional languages and on the whole range of health-keeping systems.
10 आज पश्चिमी देशोंमें भारतीय आरोग्य-रक्षक पद्धतियोंकी लोकप्रियता बढ रही है। अतएव इनके माध्यमसे भारतीय सांस्कृतिक विरासतको विदेशोंमें सही परिप्रेक्ष्यमें पहुँचाया जा सकता है। इस विषयपर चिंतनपूर्वक दूरगामी नीतिकी आवश्यकता है । Use Indian Health Systems as our cultural Ambassadors.abroad.
Bharatiya Health Policy – Points for consideration
I. Protecting n Promoting Health is a ‘Responsibility’ - Action Points:
• At Individual Level
• At Family Level
• At Village Level
• At School level.
II. Participatory; Protective, Preventive & Promotive Public Heatlhcare:
• National Preventive and Promotive programs and Budget Allocation for the same.
• Sanitation & Hygiene
• Safe Drinking Water
• Ensuring Balanced Nutrition
• Reproductive & Child Health
• Prevention of Communicable Disease
• Prevention of Non Communicable Diseases
III. ‘Healthcare’ & ‘Medicare’ are not synonyms.
• Correcting their contextual use [Similar pair = Dharma & Religion]
• How to avoid their interchangeable use by policy makers.
IV. Clinic & Hospital based Curative Medicare – Action Points:
• Standards for Clinics, Hospitals & Practice
• Indian Guidelines for Clinical Practice (understanding the context of Indian
research & resources)
• Holistic Indian Health Care (bringing allopathy, homeopathy, ayurveda,
naturopathy under one umbrella)
• Accreditation
• Linkage with Insurance
• Universal Medicare Insurance
• Ethics & Values in Medicare
V. Role of Yoga in Healthcare:
• Yoga for Positive Health – a wellness initiative
• Yoga Therapy for Chronic Systemic Illnesses [Adhij Vyadhis]
• Yoga in Palliative Care
• Yoga education
VI. Role of Ayurveda in Healthcare
• Ayurveda Education
• Ayurveda in Medicare
VII. Role of Traditional Medicinal Systems:
• How to Preserve & Promote usage of Traditional Medicinal Systems
VIII. Policies Related to Medical Education:
• Work towards holistic health course – AYUSH + Western Medicine. Ayurveda &
Holistic Approach towards Medicare based on Bharatiya Vangmaya.
• Revise syllabus to become more practical for Indian situation. [start the course
with rural postings , include nursing syllabus in first yr, and then go on to
anatomy, physiology pathology pharmacology along with medicine surgery etc]
• Involve and use students in implementing national health programs right from first
year.
• Less of theory more of practical /clinical work
• Make post degree service to the nation compulsory
• Ethics & Values in Medical Eduction
IX. Role of WHO in Bharatiya Healthcare Delivery:
X. Policies related to Medical Research:
• Ethics & Values in Clinical Research
• Support for original research on Indian knowledge.
• What research should not happen in this country (Ex: Multi Centric Trials from
abroad using our patients as guinea pigs)
XI. Importance of Traditional Life Style and Value System:
• Influence of single parent families on child health
• Violence, depression and lack of emotional support in families
• Violence in Schools
XII. Spiritual Health & its Allied Sciences:
XIII. Quantifying Health needs of Society:
Arogya shiksha for every individual: a)how many teachers for that b) how many
Arogya school for that
Basic medical care for ill: a) how many ills are expected, b) how many GPs required,
c) how many colleges, d) how many Health Social & Communication workers, e)
source of fund social organizations/govt/investors and profit makers
Advanced medical care a) how many pts expected, b) how many subspecialists
required, c) how many colleges, d) funds - social organizations/govt/ investors and
profit makers (insurance), e) teaching opportunity, availabilty of teachers.
XIV. Information Technology & Health:
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1. भारतकी पारंपारिक स्वास्थ्य रक्षा तथा उपचार पद्धति भारतीय जलवायु, सांस्कृतिक परिवेश, तथा निसर्गदत्त साधनसंपत्तिके अनुकूल है साथ ही इसका सूक्ष्म ज्ञान विभिन्न प्रकारसे और विभिन्न परिमाणोंमें देशके लोकमानस और लोकज्ञानसे जुडा है । अतः स्वास्थ्यनीतिमें भारतीय पद्धतिका भारी प्रचलन न केवल उपयोगी है वरन इसके बिना हम जनताकी आरोग्यविषयक जरूरतें पूरी नही कर सकते। भारत जैसे बडे देशकी और अत्यंत विषमताओंसे भरे समाजकी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतोंके लिये केवल एलोपथी का माध्यम नितान्त अपर्याप्त है इस बातको स्वीकार करना होगा। सभी प्रणालियोंसे मिलाजुला लाभ उठाया जा सके ऐसी नीति अपनानी होगी तभी संपूर्ण लोकसंख्याके लिये आवश्यक स्वास्थ्य सुरक्षा दी जा सकेगी -- Attitudinal Change for Holistic Health Management
2. स्वास्थ्य-सुरक्षाके संबंधमें प्रत्येक व्यक्तिके स्वयंके ज्ञान एवं अनुशासनका महत्व अनन्य है, अतः इस बातको भी स्वीकारना होगा कि स्वास्थ्य-सुरक्षा का आरंभ शिक्षा व्यवस्थासे होता है। शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति की स्व-आरोग्यसंबंधी शिक्षा तथा दूसरोंकी स्वास्थ्य रक्षाके लिये आवश्यक वैद्यकीय शिक्षा दोनोंकी बाबत सुयोग्य दिशा परिवर्तन की आवश्यकता है -- इसे ध्यानमें रखते हुए नई आरोग्य-रक्षक शिक्षा नीति बनानी होगी। यह विषय इतना व्यापक है कि इसी विषयके अलगसे 10 बिंदु बनाने होंगे। Policy changes in Education
3. देशमें आरोग्यसंबंधी रिसर्च अपर्याप्त और भारतीय पद्धतिसंबंधी रिसर्च दुर्दशाग्रस्त है -- इन दोनोंको सुधारनेकी योजनाएँ आवश्यक है। Research Needs
4. देशमें आरोग्यसंबंधी जो सांंख्यिकी एकत्रित की जाती है उसके उद्देश्य एवं उद्देश्य-पूर्ति पर विशेष ध्यान देना होगा तथा स्थानिक निकायोंमें सांख्यिकी-अध्ययन एवं इसपर आधारित स्थानीय जरूरतोंको पूरी करनेवाली नीतियाँ अपनानी होंगी जो आज नही हो रहा। इस प्रक्रियामें विद्यार्थी तथा शोधविद्यार्थियोंका बडा सहभाग आवश्यक होगा। Statistical analysis capabilities and their utilisation for local-level scheme variations
5.आजके उपलब्ध अस्पतालोंमें प्रायोगिकता से आरंभ कर भारतीय प्रणालीकी सिद्धता आधुनिक पॅरॅमीटरसे परखनेसंबेधी प्रयोगोंका आयोजन अत्यावश्यक है। इसके बिना दोनों प्रणालियोंका तालमेल नही बैठाया जा सकता जिसकी चर्चा पहले मुद्देमें की गइ है। Experiment-based synthesis of all systems for Holistic Health Management
6. चूँकि आरोग्य-रक्षा हेतु व्यक्तिगत ज्ञान व अनुशासनके माध्यमसे पचास प्रतिशत जनसंख्याकी निरोगिताको बचाया जा सकता है अतः योग, आहार-प्रणाली आदि निरोगिता-रक्षक योजनाओंको सम्मान, सुविधा एवं बीमाके साथ जोडा जाना चाहिये। इससे वे सभी जन लाभान्वित होंगे जो बिमार नही होते। इस तुलनामें आजकी सभी योजनाओंका लाभ केवल बीमार पडनेसेही मिलता है। एक गलत अर्थनीति भी इस मुद्देपर टिकी है जिसमें अधिक बिमारीको अधिक जीडीपी और अधिक विकासकी संज्ञा दी जाती है। इसी मुद्देपर सरकारी संस्थानोंमें आर्थिक घोटाले भी होते रहते हैं । positive benefits for good health - change the unwellness-based definition of GDP
7. सरकारकी कृषि नीति तथा पर्यावरण-नीति दोनोंही भारी मात्रामें प्रदूषणको बढावा दे रही हैं जिस कारण अधिकाधिक बिमारियाँ फैल रही हैं। रासायनिक खाद रहित कृषि और देशी वंशकी गायें-बकरियाँ-मुर्गियाँ (पशुधन) के बिना बिमारियाँ पढती रहेंगी। इसी प्रकार आजकी नगर-विकास नीतियाँ भी जीवनको तनाव-ग्रस्त बना रही हैं जो रोगका बडा कारण है। नगर-विकासकी दिशा बदले बगैर इन तनावों एवं बिमारियोंसे बच पाना कठिन है। Paradigm Shift needed in policies for Eco-conservation, Agriculture, Animal Husbandary, and Urbanisation,
8. कानून में 3-4 दिशाओंमें परिवर्तन आवश्यक है - आजका कानून आयुर्वेदको बंधे पानीकी तरह बाँधकर रखना है और किसी भी नये रिसर्छकी संभावना से वंचित करता है। आजका कानून केवल ठप्पाघारी ( डिग्री आधारित) प्रॅक्टिसकी अनुमति देता है -- इसे गुरुकुल आधारित बनाना होगा। साथ ही हमारा आयपीआरका कानून पारंपरिक सामाजिक ज्ञानको विश्व-स्तरीय आक्रमणसे बचानेमें पर्याप्त रूपसे सक्षम नही है। Many legal changes needed, Urgent attemtion to IPR Laws to safeguard the interest of our traditional knowledges
9. स्वास्थ्यविषयक प्रचार-प्रसार हेतु पुस्तकें व इलेक्ट्रॉनिक माध्यमोंको भारतीय भाषाओंमें उपलब्ध कराना। विशेषतः भारतीय पद्धतियोंका ज्ञान जो इतस्ततः बिखरा पडा है उसका संकलन एवं अगली पीढियोंके लिये जतन आवश्यक है। Books, Clip-banks in regional languages and on the whole range of health-keeping systems.
10 आज पश्चिमी देशोंमें भारतीय आरोग्य-रक्षक पद्धतियोंकी लोकप्रियता बढ रही है। अतएव इनके माध्यमसे भारतीय सांस्कृतिक विरासतको विदेशोंमें सही परिप्रेक्ष्यमें पहुँचाया जा सकता है। इस विषयपर चिंतनपूर्वक दूरगामी नीतिकी आवश्यकता है । Use Indian Health Systems as our cultural Ambassadors.abroad.
Bharatiya Health Policy – Points for consideration
I. Protecting n Promoting Health is a ‘Responsibility’ - Action Points:
• At Individual Level
• At Family Level
• At Village Level
• At School level.
II. Participatory; Protective, Preventive & Promotive Public Heatlhcare:
• National Preventive and Promotive programs and Budget Allocation for the same.
• Sanitation & Hygiene
• Safe Drinking Water
• Ensuring Balanced Nutrition
• Reproductive & Child Health
• Prevention of Communicable Disease
• Prevention of Non Communicable Diseases
III. ‘Healthcare’ & ‘Medicare’ are not synonyms.
• Correcting their contextual use [Similar pair = Dharma & Religion]
• How to avoid their interchangeable use by policy makers.
IV. Clinic & Hospital based Curative Medicare – Action Points:
• Standards for Clinics, Hospitals & Practice
• Indian Guidelines for Clinical Practice (understanding the context of Indian
research & resources)
• Holistic Indian Health Care (bringing allopathy, homeopathy, ayurveda,
naturopathy under one umbrella)
• Accreditation
• Linkage with Insurance
• Universal Medicare Insurance
• Ethics & Values in Medicare
V. Role of Yoga in Healthcare:
• Yoga for Positive Health – a wellness initiative
• Yoga Therapy for Chronic Systemic Illnesses [Adhij Vyadhis]
• Yoga in Palliative Care
• Yoga education
VI. Role of Ayurveda in Healthcare
• Ayurveda Education
• Ayurveda in Medicare
VII. Role of Traditional Medicinal Systems:
• How to Preserve & Promote usage of Traditional Medicinal Systems
VIII. Policies Related to Medical Education:
• Work towards holistic health course – AYUSH + Western Medicine. Ayurveda &
Holistic Approach towards Medicare based on Bharatiya Vangmaya.
• Revise syllabus to become more practical for Indian situation. [start the course
with rural postings , include nursing syllabus in first yr, and then go on to
anatomy, physiology pathology pharmacology along with medicine surgery etc]
• Involve and use students in implementing national health programs right from first
year.
• Less of theory more of practical /clinical work
• Make post degree service to the nation compulsory
• Ethics & Values in Medical Eduction
IX. Role of WHO in Bharatiya Healthcare Delivery:
X. Policies related to Medical Research:
• Ethics & Values in Clinical Research
• Support for original research on Indian knowledge.
• What research should not happen in this country (Ex: Multi Centric Trials from
abroad using our patients as guinea pigs)
XI. Importance of Traditional Life Style and Value System:
• Influence of single parent families on child health
• Violence, depression and lack of emotional support in families
• Violence in Schools
XII. Spiritual Health & its Allied Sciences:
XIII. Quantifying Health needs of Society:
Arogya shiksha for every individual: a)how many teachers for that b) how many
Arogya school for that
Basic medical care for ill: a) how many ills are expected, b) how many GPs required,
c) how many colleges, d) how many Health Social & Communication workers, e)
source of fund social organizations/govt/investors and profit makers
Advanced medical care a) how many pts expected, b) how many subspecialists
required, c) how many colleges, d) funds - social organizations/govt/ investors and
profit makers (insurance), e) teaching opportunity, availabilty of teachers.
XIV. Information Technology & Health:
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सोमवार, 31 मार्च 2014
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