रविवार, 5 अक्तूबर 2014

गव्य-चिकित्सा संवादशाला के लिये दर्शिका -- मुंबई दि 30-06-2013

प्रकृति
पहाड, नदियाँ, वृक्ष,जलवायु, खनिज
वनचर, ग्राम-पशु, मनुष्य
ज्ञानसाधना, प्रयोगशीलता,उत्पादन, संपन्नता
समाज-व्यवस्था – वनवास,ग्रामवास, नगरवास
भौगोलिक व्यवस्था
--------------------------------------------
ग्राम-रचना
भारतीय समाज-व्यवस्था का केंद्र है गाँव। अधिकांश जनसंख्या के निवास, उत्पादन एवं चरितार्थ का स्थान
गाँवोंकी भौगोलिक रचना में केंद्र पर ग्रामस्थान है जो निवासके लिये है। इसके चहुँ ओर खेत हैं, उनके आगे चराई के लिये प्रधिकृत जमीन, उसकेआगे  वह जंगल जो उस गाँवका माना जाता है–       अर्थात इस जंगलके तमाम उत्पादोंपरगाँव का उपभोग होगा और इस जंगलके रखरखाव की जिम्मेदारी गाँव की होगी। यह प्रायःअरण्य और चराई के बीच बफर-झोन का काम करता है और इसमें बडे वन्यपशू नही होते। ये प्रायः समतल भी होते हैं।
इसके परे होंगे वे अरण्य जिनपर किसी एक गाँवका अधिकार नहीहोगा – रखवाली का जिम्मा राजा का होगा। दुर्गम पहाडियाँ, नदियों व झरनों के उगमस्थान, वन्यपशुओंका निवास, साथही कतिपय वनवासी ऋषियोंके गुरुकुल, आश्रम यातपःस्थली।
-----------------------------------------------------------------------
आश्रम जीवन
अर्थात शोध व विद्यादानके संस्थान
 वनवासी --  ये थे गुरुकुल वासियोंके साथी
ग्रामवासी – ये थे उनशोधोंके पूरक कारीगर और उत्पादक
नगरवासी – ये थे राज्यकर्ता  (व्यवस्था-रक्षक) या व्यापारी
वन- विद्याके केंद्र
हरेक को वनमें लौटना है।वन- विद्याके केंद्र हरेक को वनमें लौटना है।
--------------------------------------------------------------

आश्रम जीवन
प्रकृति के साथ एकतानताबनाये हुए
पहाड, वन्यजीव, जंगल,नदियाँ – बचाने हेतु आवश्यक जीवन पद्धति
 आवश्यक नीतिमूल्य -अपरिग्रह, शांति, मैत्री, विनामूल्य विद्यादान, प्रयोगशीलता, तप, सत्यवादिता(ज्ञानप्रसार के लिये अनिवार्य), निर्भयता, समता (विद्यादानमें सबसे एक जैसाव्यवहार – उदा. कृष्ण-सुदामा)
देवराई ऐसे जंगल जहाँ से कोई भीकुछ भी नही उठायेगा
-----------------------------------------------------------------------------
ग्राम-जीवन
कृषि संस्कृति – अन्नंबहु कुर्यात् तद् व्रतम् ।
एक बीजसे हजारोंकी उत्पत्ति करनेवाला एकमेव व्यवसाय
आवश्यक नीतिमूल्य –अस्तेय (अचौर्य), धैर्य, सहयोग, कौशल्य, पशुपालन, कला, कारीगरी, 
-----------------------------------------------------------------------------------------
नागरी जीवन
राज्यसत्ता का केंद्र,व्यापार – केंद्र,
आवश्यक नीतिमूल्य –आश्रमों का अनुशासन शिरोधार्य, शौर्य, नीतिमानता, दंड-व्यवस्था, न्याय, शुद्ध-व्यापार, कला की परख   व कलाको प्रोत्साहन,
वनजीवनकी की ओर वापसी - नागरी एवं ग्रामीणइलाकोंसे हर बालकका विद्याग्रहण के लिये वनों में निवास
वानप्रस्थमें वन-निवास व ज्ञानसाधना -- फिर संन्यास 
संन्यासीको लौटना है ग्रामों और नगरोंमें -- घूमघूमकर ज्ञानप्रचार के लिये
---------------------------------------------------------------------------------
यह सारा विवेचन आजकी संवादशालासे कैसे संबंधित है
गव्य चिकित्साका सूत्र है कि मनुष्यके सारे रोगोंका निराकरण पंचगाव्योंसे होता है – दूध, दही,  घृत,गोमूत्र व गोबर ।
ऐसी चिकित्सामें गायके स्वास्थ्यका विचार अवश्यंभावी है
-------------------------------------------------------------------------------
आयुर्वेदके अनुसार गव्योंके लाभ की 4 शर्ते हैं 
कि गाय जंगलमें चरनेवालीहो ताकि उसके खाद्यान्न में हर प्रकारकी वनस्पतियाँ हों – खूँटेसे बाँधकर रखी गाय अप्रभावी है
आजकी धवलक्रांतिमें गायको एक मशीन माना जाता है -- चेतन     प्राणी नही । अतः सलाह होती है कि गायको कमसे कम व्यायाम दो ताकि उसकी ऊर्जा केवल दूध बनानेमें लगे। यह गव्य चिकित्सा दृष्टिसे अलग है।
दूसरी शर्त – कि बछडा या बाछी गायका दूध पीकर पूर्णतया तृप्त हो तभी गायका दूध मनुष्य के लिये लिया जा सकता है।
तीसरी शर्त कि गायको सर्वदा यह संज्ञान हो कि वह आपके परिवारकी सदस्य है।
चौथी शर्त – गायका खाना कितना विशुद्ध या फिर पोल्यूटेड  है।
और अब तो विदेशी नस्लोंसे बननेवाली प्रजातियोंके दूधके प्रोटीन पर भी प्रश्नचिह्न है। फिर ऐसी गायों के गव्य से चिकित्सा कैसे हो सकती है।
-----------------------------------------------------------------------------------------
तो आजके विवेचन का सारांश इतना ही है कि गव्य-चिकित्सा की विधी कारगर होनेकी आवश्यक शर्त है कि हम अपने वनोंके पुनरुत्थानपर ध्यान हैं।
देशमें केवल 13 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित है जो कि 33 प्रतिशत होना चाहिये। 
-------------------------------------------------------------------------------
समग्र नीति के लिये
वनसंपदा का संवर्द्धन
गोपालनकी सरकारी नीतियोंमें सुधार
शोध प्रक्रिया में जुट जाना
दूध व्यवसाय में घुसी आरोग्य-विघातक प्रवृत्तियों पर अंकुश
देशी गोवंशके माध्यम से गायोंकी वस्ल में सुधार 
------------------------------------------------------------------------------
RV1.4 Bounties from a cowगौपालन से उपलब्धियां
 मधुच्छन्दा वैश्वामित्र:  इन्द्र:   गायत्री 
Creates a civilized society
सभ्य समाज  बनता है

1.सुरूप कृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे  जुहूमसि द्यविद्यवि ।।1.4.1
Daily efforts in service of good milk giving cows bless us with beautiful bounties.
 प्रति दिन प्रचुर दुग्ध प्रदान करने वाली गौवों की सेवा  से सुन्दर समाज का विकास
 होता है।


Cows are knowledge enhancers   
गौ  बुद्धि बढ़ाती है
       2. उप नः सवनागहि सोमस्य सोमपाः पिब । गोदा इद्रेवतोमदः ।। ऋ 1.4.2
Cows give our vision to make knowledge creating hubs that increase our knowledge resource, makes us more enterprising to be more prosperous and happy.
           गौवों से दिव्य चक्षु मिलते हैंगौ पालन से  पुरुषार्थी स्वभाव  बनता हैजो सुख और संपन्नता लाता है 
Facilitates Meditation
परमेश्वर का साक्षात्कार होता है
3. अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्  मा नो अति ख्य गहि ।। 1.4.3
Makes us hear the voice of our conscience in Meditation
ध्यानवस्था में हर विषय पर सुमति हमारे हृदय में अंतरमन में ही मिलती है. हम अपने अंतर्मन की सुमति का कभी तिरस्कार न करें.
Best Counsel
4.परेहि विग्रमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम्  यस्ते सखिभ्य वरम् ।। 1.4.4
May we learn to never ignore the voice of our conscience
हमारी अंतर आत्मा की आवाज़ ही सब से अधिक हितकारी सलाह सिद्ध  होती है.
Enables good articulation

5.उत ब्रुवन्तु नो निदो निरन्यतश्चिदारत  दधानेन्द्र इद दुव: ।।1.4.5
Our speech becomes sweeter and civil
वाणी सदैव उत्तम भद्र बोलें कभी भी अभद्र निंदात्मक अपशब्द न बोलें
Peace loving temperament

6. उत नो सुभगाँ अरिर्वोचेयुर्दस्म कृष्टय:  स्यामेदिन्द्रस्य शर्मणि।। 1.4.6
A change is brought about in our temperament to earn our living by hard work and fair means. Our prosperity and conduct forces even our enemies to be envious.
हमारा उत्तम श्रमशील जीवन यापन द्वारा प्राप्त सौभग्य समृद्धि तथा भद्र व्यवहार हमारे शत्रुओं को भी हमारी प्रशंसा करने के लिए बाध्य करें.
Makes us Virile & Productive
7. एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम्  पतयन् मन्दयत्सखम् 1.4.7
Virility is established in our physical body and temperaments to bring forth good progeny and be good achievers in life.
वीर्य वृद्धि से पौरुष द्वारा उत्तम संतान और सोम वृद्धि से  जीवन मे उन्नति समृद्धि प्राप्त कराती है.
Removes obstacles to prosperity

अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव:  प्रावो वाजेषु वाजिनम्।। 1.4.8
Our ability is strengthened to perform thousands of tasks to beat all obstacles in the path of our prosperity.
उत्पन्न सोम द्वारा विजय श्री प्राप्त करने के लिए हम शतक्रतु – सेंकड़ों शुभ कार्य करने वाले बनते हैं .
All round Prosperity


तं त्वा वाजेषु वाजिनं वाजयाम: शतक्रतो  धनानामिन्द्र सातये ।।1.4.9
 Cow develops the inventive temperament to accomplish innumerable techniques required for improving daily life.
(शतक्रतोअसंख्य वस्तुओं के विज्ञान को रखने वाले (धनानाम्‌) पूर्ण विद्या और सामर्थ्य को सिद्ध करने वाले पदार्थों का (सातये) अच्छे प्रकार सुख भोग करने के लिए (वाजेषु वाजिनम्‌) प्राप्त करने में समर्थ (त्वा वाजयाम:) नित्य प्रति जानने और प्राप्त करने के प्रयत्न करते हैं.
Cows provide Divine Blessings
प्रभु कृपा रहती है  

यो रायो3वनिर्महान्त् सुपार: सुन्वत: सखा  तस्मा इन्द्राय गायत।। 1.4.10
Makes possible divine blessings by friendly role of the Almighty/
जो असंख्य धनधान्य से समृद्धि देने वाला परमेश्वर है वह एक सखा के रूप में ( गोसेवक के ) साथ रहता है, उसी का गुणगान सब करते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं: