बुधवार, 24 जुलाई 2013

1 फुर्सत में + 2 चावल पकाना (चावल की खीर से)

फुर्सत में
चावल की खीर
    इस पुस्तक की बात कैसे चली ? यह तब की बात है जब दूरदर्शन पर 'सबचॅनेल अपने 'जरा हटके ' टाईप कार्यक्रमों के लिए प्रसिध्द हो चला था
    अखबारों मे अक्सर व्यंजनों को बनाने की विधी के लिये भी सेलिब्रेटी का नाम लिया जाता है मसलन ऐश्र्वर्या राय का एक मॉक इन्टरव्हयू लिखा जाएगा - की हमने उनसे उनका पसंदीदा व्यंजन पूछा- उन्होंने कहा - ब्रेडके पकोडे फिर हमने पूछा - आप इसे कैसे बनाती है। उन्हेंने अपनी विधी बताई लीजिए प्रस्तुत है पाठकों के लिए फिर वह विधी भी ऐश्र्वर्या के नाम फोटो के साथ छपेगी अब प्रश्न ये है कि यदि आपको ब्रेड के पकौडे पसंद हो तो क्या जरूरी है कि उसे बनाना भी आता हो?
    घर में इसी तरह का लेख पढकर सह चर्चा हुई की सब टीव्ही के लिए यह अच्छा विषय है वहाँ ऐसी खबरों को व्यंगात्मक और प्रहसनपर स्क्रिप्ट मे ढालकर पेश किया जाता है। सो मान लो सब टीव्ही ने मेरा इन्टरव्हयू किया तो वो कैसा होगा ?
    किसी ने मुझसे पूछा - मॅडम आपकी पसंदीदा डिश क्या है?
    मैंने भी गंभीर चेहरा बनाकर अपना राज बताया - गरम गरम भात पर घर का बना घी डालकर खाना - उसमें नमक, मिर्च, मसाला, दाल, सांभर कुछ भी हो।
    'हं च् च् और बनाने की विधी ?'
    इस पर मुझे खयाल आया की बात केवल सादे चावल पकाने की ही क्यों हो, इसके भी कई तरीके और कई टिप्स होते हैं। फिर यदि इससे आगे चलकर कुछ और बनाना हो तो उसके लिए तो सैकडों विधियाँ हैं। मॅगी या मॅकडोनाल्ड संस्कृति में तो एक ही जैसा स्वाद, चाहे दुनियाँ में कहीं जाओ, कभी भी खाओ। लेकिन भारतीय खाने की मजा यदी है की इसे हमेशा नित नये तरीके से, नसे स्वाद के साथ बनाया जा सकता है। और इसमें हमारे मसाले बडी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मसालों की सुक्ष्म मात्रा औषधियों का भी काम करती है। कई बार आपको अच्छी लगनेवाला मसाला और व्यंजन एक दिशा को संकेत करता है कि आपके शरीर को क्या चाहिए - परंतु शर्त ये है कि आपको अपनी जिव्हा को इसके लिए सजग और ट्रेन करना पडता है ताकि वह आपके शरीरकी असली आवश्यकता का संकेत और संवेदना पकड सके
    स्वाद की व्हरायटी के लिए किये गये मेरे प्रयोग गिनाने से पहले यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं कोई सिध्दहस्त पाकशास्त्री नही हूँ उलटे मेरी गिनती उनमें से है जो अव्वल तो रसोई में पैर नही रखती, और रखे भी तो वहाँ से जल्दी छुटकारा पाने का इलाज ढूँढती है हाँ, एक पाककला शिक्षक के रुपमें मेरा लोहा माना जाता है। मांसाहारी तो हू नही लेकिन शाकाहारी खाने के मामले मे मेरी ट्रेनिंग का फायदा कई लोग आज भी लेते हैं और मेरे हाथ के स्वाद की प्रशंसा भी करते हैं।
    इसी लिए उम्मीद कि मेरे प्रयोग खास कर उन गृहिणियों की अवश्य पसंद आयेंगे जिन्हें किचनके काम के साथ ऑफिस और बाहर की जिम्मेदारियाँ भी निभानी पडती है
    महाराष्ट्र में खाने का निवाला मुखमें डालने से पहले एक श्लोक पढा जाता है। जिसके अनुसार अन्नग्रहण केवल उदरभरण नही है, बल्कि एक जज्ञकर्म है। हर निवाला एक आहुति है जो पेट की अग्नि में पडती है। वह आहुति प्रसन्न चित्तसे डाली जाण् और सुस्वादु हो इसके लिए आवश्यक है कि निवाले को अच्छी तरह चबाया जाय। यह करते हुए यदि एम जिव्हा में लगनेवाले स्वादके प्रति जागरुक रहें तो हमें विभिन्न स्वादों का आनंद मिलता है। जैसे किसी की अच्छी आँखे रंगोंकी सुक्ष्म छटाओं का फरक भी परख लेती हैं, उसी प्रकार जिव्हा को भी जब स्वादोंके सूक्ष्म भेद समझ में आने लागते है, तब वह आहार अधिक असरदार होता है। इन सूक्ष्म भेदों की पहचान जिव्हा कर सके इस लिए भी खाने में विभिन्नता ला पाना आवश्यक है यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा और मन्तव्य भी वही है।
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 २. चावल पकाना
    भूखा रहना पडे इस गॅरंटी का सबसे पहला सरल पाठ यही है कि चावल पकाना सीख ले। चावल पकाने भर में क्या विभिन्नता हो सकती है? इसमें सीखने लायक क्या है? लेकिन है।
    कामाजी गृहिणी के लिए सबसे आसान है प्रेशर कुकर का सहारा लेना। प्रेशर कुकर में चावल पकाने के लिए पानी का अनुपात ठीक ठीक रखना आवश्यक है। साधारणनया जितनी कटोरी चावल हो उसके तीन गुना पानी डाला जाता है। चावल पुराना हो तो आधी कटोरी और। स्वास्थके लिये एक वर्ष पुराना चावल अच्छा होता है। सर्वमान्य और सबसे आसान तरीका यही है। लेकिन यदि साधारण बरनन में चावल पकाना हो तो बरतन पतला हो क्योंकि इसमें चावल जल जाता है।

    थोडी देर भिगोये हुए चावल ज्यादा अच्छे पकते है। उबलते पानी में चावल छोडने से वे अच्छे पकते है। आँच जितनी मंद हो, स्वाद उतना अधिक आता है। बरतन पर ढक्कन रखनेसे चावल उफन जाता है, इसलिए चावल पूरी तरह ढँकने के बजाय थोडा खुला छोड दें। ढक्कन के लिए ऊपर रखी थाली में थोडा पानी रखें। इससे चावल उफनने की गति मंद हो जाती है और चावलमें पानी कम पड रहा हो तो बादमें यही गरम पानी डाला जा सकता है।


किसीने घासफूस सुबहसे शाम तक धीमी आँच पर पकाये चावल के बेहतरीन स्वाद का मुझसे जिक्र किया है। सोलर कुकर के चावल का भी आपना अपग स्वाद होता है। मुझे खुद उपले की आगमें पके चावल, खास कर उसमें उपले के धुएँ की थोडीसी सुगंध मिली हो तो बहुत पसंद है। मिटटी के बरतन में पके चावल की आपनी ही सुगंध होती है। पुरी में जगन्नाथजी की रथयात्रा के समय मिलनेवाला चावल का खास प्रसाद इसी तरह मिटटी के बरतन में पकाया जाता है।
    गरम गरम चावल को केले के कोमल पत्तों पर परोसे तो उन पत्तो की भीनी खुशबू का आनंद ले सकते है। हम बचपन मे कहते थे - देखो हम क्लोरोफिल खा रहे है। केले के पत्तेका स्वाद जिसमें उतरा हो, उस खानेसे हिमोग्लोबिन बढता है ऐसी आयुर्वेद की मान्यता है।

    पकने पर चावल का एक एक दाना अलग हो इसके लिए चावल को पहले धी में भून लेने का रिवाज भी है। मेहमान नवाजी केलिए यहि अच्छा तरीका है जो हॉटेल्स मे भी अक्सर अपनाया जाता है। इसमें चावल के कच्चे रहने की संभावना भी कम है। किसी नौसिखिए के लिये धी भुना चावल पकाना अधिक आसान है।
गरम गरम चावल को बिना कुछ भी मिलाये खाने का अपनाही स्वाद होता है। इसी तरह ठंडे चावल भी आराम से चबा कर खानेपर स्वादिष्ट हो जाते हैं। घी मिलाओ तो अमग स्वाद और दोनों को नमक मिलाकर खाऔ तो और भी अलग।

चावल का साधरण अर्थ अरवा (ऋद्धध््रठ्ठ) चावल ही माना जाता है। लेकिन भारत के कई हिस्सों मे एक अलग किस्म का चावल खाया जाता है जिसे मोटा चावल या उसना चावल कहते है। इसे पानी की अधिक मात्रा में पकाकर उससे माड छान लेते हैं। गरीबी में माड को ही नमक इत्यादि के साथ लोग खा लेते हैं। आसाम, बंगाल, बिहार, ओरिसा के अलावा केरल मे और महाराष्ट्र के पश्च्िामी घाट के कुछ हिस्सों मे यही चावल खाने का रिवाज है। आंध्र प्रदेश, ओरिसा के आदिवासी इलाकों मे या जिन इलाकों मे अत्यधिक गरीबी है वहाँ इस चावल की कांजी बनाकर पाने
का रिवाज है। ताकि कम चावल ज्यादा दिन तक भूख मिटाते रहें। बासी चावल में दूसरे दिन प्याज का छौंक लगाकर भी खाया जाता है जो अपने आपमें एक नई डिश हो जाती है। बीमार व्यक्ती के लिए पतला भात बनता है। इसमें साधरणसे डेढ या दुगुना पानी साथमें, थोडा घी, जीरा, अजवाईन, नमक डालते हें और पतला ही खाते हैं।
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