शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

*अखण्ड स्वास्थ्य* ५१. डिंडोरी

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*अखण्ड स्वास्थ्य*

           ५१.

 *रोग के कारण* 

           २७.

  *प्रकृति की सफाई व्यवस्था में बाधा*

☝️ हमने आज से 50 वर्ष पहले अपने सामने, इन्हीं आंखों से देखा है कि लोग सामान्य अवस्था में बुखार, सर्दी, जुकाम, उल्टी, दस्त फोडे़- फुन्सी जो प्राथमिक चरण में होते है इनको कभी रोग नहीं मानते थे  जन सामान्य में मान्यता थी व उनका मानना था कि इस माध्यम से शरीर की गंदगी बाहर निकल रही है अतः इन्हें निकलने दो ।

☝️ आयुर्वेद में शरीर की शोधन क्रिया के लिए पंचकर्म विज्ञान के अंतर्गत वमन, विरेचन, लंघन, रक्त मोक्षण आदि तमाम प्रकार की प्रक्रियाओं का वर्णन आता है वे कृत्रिम शोधन  क्रियायें है ।

👉 मानव के शरीर में जब  विजातिय पदार्थ यानी विषैले तत्व अधिक बढ़ जाते हैं । आहार-विहार की गड़बड़ी से या भोजन में गए विषैले पदार्थ जो विभिन्न माध्यमों  से शरीर में पहुँच गये ।

 ☝️प्रकृति उस जहर को शरीर से बाहर निकलने का उपक्रम करती है ।

👉जब शरीर में गंदगी बढ़ जाती है तो वायु प्रबल होकर के दस्तों के द्वारा उस गंदगी को बाहर निकालने की प्रक्रिया संपन्न करती है । 

👉पित्त बढ़ जाता है दूषित पदार्थ आमाशय में इकट्ठे होते हैं तो भूख लगना बंद हो जाती है, एसिडिटी बढ़ जाती है, पेट में जलन होने लगती है तो प्रकृति उन्हें वमन के द्वारा बाहर निकालने की कोशिश करती है ,जी मचलना ,सिर दर्द होना, सुस्ती आना, मुंह सूखना, मुंह में पानी आना, खट्टापन लगना पहले ये सब लक्षण प्रकट होते हैं उसके बाद उल्टियां शुरू हो जाती है प्राचीन समय में सभी समझदार लोग गुनगुना पानी पी कर जल्दी जल्दी  उल्टियां होने देते और शरीर का सारा जहर बाहर निकाल देते थे और ऐसे ही सर्दी जुखाम बहती तो उसको रोकते नहीं थे उसको पूरी तरह बहा कर के 3 दिन के अंदर में बढ़े हुए कफ को निकालकर शरीर का संतुलन बना देते ।

☝️लेकिन वर्तमान के युग में, इन 50 वर्षों में जब से एलोपैथिक दवाइयां आयी व इन दवाइयों का ऐसा प्रचार किया, सिर का दर्द हुआ तो आनंद कर लो, एना सीन लो इतनी विभिन्न प्रकार की दवाइयों का प्रचार किया और आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा ने भी ऐसी दवाई बनायी जो जरा सा कुछ हुआ नहीं कि उसकी गोली ले ली और  उपद्रव बंद। इंजेक्शन लगाया समस्या बंद ।

👉 इस तरह मानव ने प्रकृति की सफाई व्यवस्था को बंद करके  शरीर में विषों को रुकने का मार्ग प्रशस्त कर दिया, रास्ता साफ कर दिया और शरीर में रूके व बढ़े विषैले तत्वों ने असाध्य और भयंकर बीमारियों को जन्म दिया । दवाइयों के, जांचों के, बीमारियों के जाल में पूरी विश्व मानवता बुरी तरह फंस चुकी है और इन औषधियों के बाजार ने मानव को अज्ञान के गहन अंधकार में धकेल कर समाज फैले, जन जन में प्रविष्ठ आयुर्वेद के मूल ज्ञान व जीवन विज्ञान के मूल सिद्धांतो का विनाश कर डाला ।

☝️ आज यह देश और यह दुनिया आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों से पूरी तरह अपरिचित हो गयी है । इनका वैचारिक स्तर, इनके चिंतन का स्तर, इनके ज्ञान का स्तर गिरा ही नहीं बल्कि उल्टा हो गया ।

👉जो शरीर के लिए हितकर था *उसे बीमारी मान बैठे* और जो अहित कर था *उसे उपचार मान बैठे* 

☝️यही विश्व  मानवता का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है और जब तक इस दुर्भाग्य की अज्ञान की सीमा से मानव का चिंतन बाहर नहीं निकलेगा । आयुर्विज्ञान के सिद्धांतों की और नहीं लौटेगा तब तक संसार की कोई भी अस्पताल, कोई भी डॉक्टर, कोई भी चिकित्सा पद्धति व कोई भी औषधि मानव को स्वास्थ्य प्रदान नहीं कर सकेगी । 

   *याद रखो* 

 ☝️जब भी विश्व मानवता को, संसार के लोगों को रोग मुक्त जीवन की चाह होगी, स्वास्थ्य जीवन की चाह होगी, तो उसे इस मान्यता को बदलना ही पड़ेगा व प्रकृति के इशारों को समझना ही  पड़ेगा ,अपनी गलत मान्यताओं को छोडना ही  पड़ेगा और औषधि और चिकित्सा के वर्तमान ढांचे से अपना मुंह मोडना ही पड़ेगा ।

 तभी उनका कल्याण होगा ।

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