सोमवार, 15 मार्च 2021

*अखण्ड स्वास्थ्य* ७५ रोग आपका शत्रु नही


*अखण्ड स्वास्थ्य*

           ७५.

 *अपनी मान्यतायें बदलिये*

             १.

 रोग आपका शत्रु नही

*अखण्ड स्वास्थ्य*

           ७५.

 *अपनी मान्यतायें बदलिये*

             १.

 *रोग आपका शत्रु नहीं है*

☝️ हे मानव रोग आपके पास मित्रवत् बनकर आता है , सावधान करने के लिए आता है कि शरीर में विकृति आ गई है, गंदगी आ गई है ,उसको साफ नहीं करोगे हटाओगे नहीं तो जीवन संकट में पड़ जाएगा , इस ओर जब तुम ध्यान नहीं देते तो प्रकृति अपने रोग रूपी दूतों को भेजकर तुम्हें सावधान ही करती हैं और उन रोग रूपी दूतों को सफाई में भी लगाती है , लेकिन तुम अपनी अज्ञानता के कारण मूर्खता के कारण अपना दुश्मन मान कर उनको हटाने का प्रयास करते हो, रोकने का प्रयास करते हो, प्रकृति आपको बीमार नहीं होने देना चाहती है जो लोग प्रकृति के पास रहते हैं उसके सानिध्य में रहते हैं, साहचर्य में रहते हैं और उनके नियमों का पालन करते हैं उन्हें यह बीमार नहीं पड़ने देती है। बीमार पड़ने पर प्रकृति हमारी गलतियों को सुधारने का उपक्रम करती है ।

👉 हे मानव रोग प्रकृति की वह क्रिया है जिसके द्वारा वह हमारी आंतरिक सफाई का काम करती है । रोग हमारा मित्र बनकर आता है और हमें यह बताता है कि हमने शरीर के साथ न्याय नहीं किया अन्याय किया है और विकृतियों को पनपने का स्थान देकर के विषों को एकत्रित कर लिया है । रोग उस आंतरिक विकारों की उपस्थिति का प्रतीक है ,मलों का प्रतीक है रोग  हमें उसकी सूचना देने  आया है रोग हमें यह संदेश देने आए हैं कि मानव तुम अपनी गलतियों को सुधारो, सावधान हो जाओ और तुम्हारे अंदर स्थित गंदगी को विषों को, विजातिय द्रव्योंं का शोधन करो, व प्राकृतिक जीवन की ओर लौट जाओ । आज के मनुष्य को देखो शिक्षित ,अशिक्षित से लेकर अति शिक्षित हर प्राणी बुरी तरह रोग ग्रस्त है पर उनके कारणों को समझने की चेष्टा नहीं करता है । प्रकृति बीमारियों के कारण को अपनी ओर से ठीक करने की व्यवस्था करती है तो हम दवा दे कर के उसके कार्य में बाधा ही डालते हैं और उस प्रकृति के काम को रोक देते हैं और आधुनिक भाषा में उसे हम चिकित्सा कहते हैं । आज की दुनिया में देखा जाए तो दवा इंजेक्शन आदि से तात्कालिक लाभ दिखता भर है पर वह जीवन की रक्षा के लिए स्वास्थ्य के लिए घातक बनते चले जा रहे हैं ।👉याद रखो

 जिस कारण से रोग उत्पन्न हुए हैं उन कारण को हटाए बिना एक भी रोग ठीक होने वाला नहीं है शरीर में रोग उत्पन्न होते ही सबसे पहले यह मालूम कीजिए, इस बात पर चिंतन कीजिए कि ये शरीर में उत्पन्न रोग के कारण कीटाणु जीवाणु विषाणु उत्पन्न क्यों हुये है? क्यों हम बीमार पड़े? प्रकृति के किस नियम को हमने छोड़ दिया ? और इस तरह से रोक के मूल कारण को समझ लेना ही आपके चिकित्सा का मूल आधार बनेगा ,रोग शरीर में उपस्थित  विजातिय तत्वों का प्रतिकार करने हटाने के लिए प्रकट होता है और आपकी विषम अवस्था का अंत कर देता है । शरीर में रोग इसलिए उत्पन्न होता है कि सफाई के लिए उसकी शरीर को आवश्यकता है । उस समय आपकी भूख बंद हो जाएगी ,प्यास बंद हो जाएगी, जी मचलना, उल्टी दस्त होना, यह रोग के द्वारा स्वास्थ्य लाभ करने का उपाय है, रोग के माध्यम से जब शारीरिक विकार बाहर निकाल दिये जाते है तो मनुष्य हल्का-फुल्का, स्वस्थ, प्रसन्न चित्त हो जाता है ।

जिसे हम बाहर से रोग के लक्षण देखते हैं वह उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है । किसी व्यक्ति को जुकाम लगी तो बढ़ा हुआ कफ निकल रहा है , फोड़ा हुआ तो खून में घुली हुई गंदगी निकल रही है । दस्त लगी तो आंतों में पड़ा हुआ दूषित मल निकल रहा है । प्राकृतिक चिकित्सा की भाषा में यह रोग नहीं है रोगों के लक्षण मात्र है और इन रोगों के द्वारा उपद्रव से शरीर की आंतरिक विकृतियों का हमें बोध होता है ।

👉 हे मनुष्य तुम्हें रोगों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा ,हम रोगों को शत्रु नहीं मित्र माने और रोगों को देखकर निराशावादी और दु:खी होने की अपेक्षा हमें प्रसन्न होना चाहिए हमें विश्वास होना चाहिए कि यह बीमारी हमें स्वस्थ करेगी, संचित विकारों को निकालकर शरीर को  भीतर से शुद्ध कर देगी और यह शरीर के लिए  लाभदायक ही सिद्ध होगी । यह मानसिक परिवर्तन प्राकृतिक व्यवस्था का सहकारी सहयोगी है और इस रोग रूपी उपद्रव को देखकर जो व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति जितना आशावादी होगा, सुखद कल्पनाओं को करेगा, मधुर विचारों को मन में रखेगा उन्हें रोग शत्रु नहीं मित्र प्रतीत होगा ।

🌏 *युग विद्या विस्तार योजना*

( मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)

👏 मां नर्मदा के पावन चरणों में ,अमरकंटक के पावन आध्यात्मिक क्षेत्र में

📡 मेकलसूता ऋषि विज्ञान स्वास्थ्य संरक्षण केंद्र ,आरोग्य ग्राम

 डिंडोरी (मध्य प्रदेश) भारत वर्ष 

📞94 51911 234

 888 9193 577 शत्रु नहीं है*

☝️ हे मानव रोग आपके पास मित्रवत् बनकर आता है , सावधान करने के लिए आता है कि शरीर में विकृति आ गई है, गंदगी आ गई है ,उसको साफ नहीं करोगे हटाओगे नहीं तो जीवन संकट में पड़ जाएगा , इस ओर जब तुम ध्यान नहीं देते तो प्रकृति अपने रोग रूपी दूतों को भेजकर तुम्हें सावधान ही करती हैं और उन रोग रूपी दूतों को सफाई में भी लगाती है , लेकिन तुम अपनी अज्ञानता के कारण मूर्खता के कारण अपना दुश्मन मान कर उनको हटाने का प्रयास करते हो, रोकने का प्रयास करते हो, प्रकृति आपको बीमार नहीं होने देना चाहती है जो लोग प्रकृति के पास रहते हैं उसके सानिध्य में रहते हैं, साहचर्य में रहते हैं और उनके नियमों का पालन करते हैं उन्हें यह बीमार नहीं पड़ने देती है। बीमार पड़ने पर प्रकृति हमारी गलतियों को सुधारने का उपक्रम करती है ।

👉 हे मानव रोग प्रकृति की वह क्रिया है जिसके द्वारा वह हमारी आंतरिक सफाई का काम करती है । रोग हमारा मित्र बनकर आता है और हमें यह बताता है कि हमने शरीर के साथ न्याय नहीं किया अन्याय किया है और विकृतियों को पनपने का स्थान देकर के विषों को एकत्रित कर लिया है । रोग उस आंतरिक विकारों की उपस्थिति का प्रतीक है ,मलों का प्रतीक है रोग  हमें उसकी सूचना देने  आया है रोग हमें यह संदेश देने आए हैं कि मानव तुम अपनी गलतियों को सुधारो, सावधान हो जाओ और तुम्हारे अंदर स्थित गंदगी को विषों को, विजातिय द्रव्योंं का शोधन करो, व प्राकृतिक जीवन की ओर लौट जाओ । आज के मनुष्य को देखो शिक्षित ,अशिक्षित से लेकर अति शिक्षित हर प्राणी बुरी तरह रोग ग्रस्त है पर उनके कारणों को समझने की चेष्टा नहीं करता है । प्रकृति बीमारियों के कारण को अपनी ओर से ठीक करने की व्यवस्था करती है तो हम दवा दे कर के उसके कार्य में बाधा ही डालते हैं और उस प्रकृति के काम को रोक देते हैं और आधुनिक भाषा में उसे हम चिकित्सा कहते हैं । आज की दुनिया में देखा जाए तो दवा इंजेक्शन आदि से तात्कालिक लाभ दिखता भर है पर वह जीवन की रक्षा के लिए स्वास्थ्य के लिए घातक बनते चले जा रहे हैं ।👉याद रखो

 जिस कारण से रोग उत्पन्न हुए हैं उन कारण को हटाए बिना एक भी रोग ठीक होने वाला नहीं है शरीर में रोग उत्पन्न होते ही सबसे पहले यह मालूम कीजिए, इस बात पर चिंतन कीजिए कि ये शरीर में उत्पन्न रोग के कारण कीटाणु जीवाणु विषाणु उत्पन्न क्यों हुये है? क्यों हम बीमार पड़े? प्रकृति के किस नियम को हमने छोड़ दिया ? और इस तरह से रोक के मूल कारण को समझ लेना ही आपके चिकित्सा का मूल आधार बनेगा ,रोग शरीर में उपस्थित  विजातिय तत्वों का प्रतिकार करने हटाने के लिए प्रकट होता है और आपकी विषम अवस्था का अंत कर देता है । शरीर में रोग इसलिए उत्पन्न होता है कि सफाई के लिए उसकी शरीर को आवश्यकता है । उस समय आपकी भूख बंद हो जाएगी ,प्यास बंद हो जाएगी, जी मचलना, उल्टी दस्त होना, यह रोग के द्वारा स्वास्थ्य लाभ करने का उपाय है, रोग के माध्यम से जब शारीरिक विकार बाहर निकाल दिये जाते है तो मनुष्य हल्का-फुल्का, स्वस्थ, प्रसन्न चित्त हो जाता है ।

जिसे हम बाहर से रोग के लक्षण देखते हैं वह उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है । किसी व्यक्ति को जुकाम लगी तो बढ़ा हुआ कफ निकल रहा है , फोड़ा हुआ तो खून में घुली हुई गंदगी निकल रही है । दस्त लगी तो आंतों में पड़ा हुआ दूषित मल निकल रहा है । प्राकृतिक चिकित्सा की भाषा में यह रोग नहीं है रोगों के लक्षण मात्र है और इन रोगों के द्वारा उपद्रव से शरीर की आंतरिक विकृतियों का हमें बोध होता है ।

👉 हे मनुष्य तुम्हें रोगों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा ,हम रोगों को शत्रु नहीं मित्र माने और रोगों को देखकर निराशावादी और दु:खी होने की अपेक्षा हमें प्रसन्न होना चाहिए हमें विश्वास होना चाहिए कि यह बीमारी हमें स्वस्थ करेगी, संचित विकारों को निकालकर शरीर को  भीतर से शुद्ध कर देगी और यह शरीर के लिए  लाभदायक ही सिद्ध होगी । यह मानसिक परिवर्तन प्राकृतिक व्यवस्था का सहकारी सहयोगी है और इस रोग रूपी उपद्रव को देखकर जो व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति जितना आशावादी होगा, सुखद कल्पनाओं को करेगा, मधुर विचारों को मन में रखेगा उन्हें रोग शत्रु नहीं मित्र प्रतीत होगा ।

🌏 *युग विद्या विस्तार योजना*

( मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)

👏 मां नर्मदा के पावन चरणों में ,अमरकंटक के पावन आध्यात्मिक क्षेत्र में

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 888 9193 577

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