सोमवार, 4 मई 2020

आयुर्वेद और कोरोना -- मंजिलें अभी और हैं

आयुर्वेद और कोरोना -- मंजिलें अभी और हैं
मैंने अपने पिछले लेखमें (हनुमानजी, पहचानिये अपनी शक्तिको) यह कहा था कि कोरोनाकी रोकथामके लिए आयुर्वेदका उपयोग करते समय हमें चार सीढ़ियां चढ़नी हैं ! जैसे किसी दोहेमें चार चरण होते हैं उसी प्रकार आयुर्वेदकी दृष्टिसे पहला चरण हमने पूरा किया है अर्थात् कोरोनासे बचे रहनेकी दवाइयां देशके अंतर्गत दी जा सकती हैं। अब हमें दूसरे चरणकी ओर आगे बढ़ना चाहिए अर्थात् विदेशोंमें भी आयुर्वेदके उन उपायोंका प्रचार करना चाहिए जिनसे स्वस्थ व्यक्ति कोरोनासे बाधित ना हो पाए तथा उसकी रोग-प्रतिरोध क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाई जा सके । तीसरे चरणमें हमें यह करना होगा कि देशके अंतर्गत कोरोनासे संक्रमित रोगियोंके उपचारके लिए भी जो आयुर्वेदकी दवाइयां कारगर होनेकी संभावना है उनका उपयोग या कमसे कम उनके कंट्रोल्ड क्लिनिकल ट्रायल हमें आरंभ कर देनें चाहिए। चौथा चरण वह होगा जब हम कोरोनासे बाधित रोगियोंके लिए विश्व भरमें आयुर्वेदकी औषधियों का प्रचार करने के लिए सक्षम हो जाएँ।
इसी लेख के आधार पर आज आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारीसे बात हो रही थी। उन्होंने कुछ उत्साहवर्धक बातें बताई।
१. स्वस्थ व्यक्ति कोरोनासे बचा रहे इसके लिए आयुर्वेदमें जो काढे बताये गये है ऐसे कुछ काढे वितरित करनेके लिए आयुष मंत्रालयने एडवाइजरी जारी कर दी है। उसके अनुसार सभी राज्योंको भी यह कहा गया है कि वे इस प्रकारके काढे बनाकर लोगोंमें वितरित करें। इस संबंधमें अन्य जानकारी आरोग्य भारतीसे मिली कि उन्होंने दिल्लीमें इस प्रकार काढेका वितरण आरंभ है कर दिया है और अब तक करीब 50000 पैकेट वितरित किए जा चुके हैं ।आगे भी आरोग्य भारती यह काम दिल्लीके लिए करती रहेगी। लेकिन अन्य समूह और राज्य सरकारें भी इसके वितणका काम आरंभ कर रही हैं।
२. कोरोनासे बचावके लिए आयुर्वेदकी जो दवाइयाँ कारगर हैं उनके विषयमें अच्छी लिखित सामग्री तैयार कर विदेशोंमें भी उसके प्रचारकी व्यवस्था हो । इस दिशामें आयुष मंत्रालयने काम आरंभ कर दिया है। इसके लिए आयुष मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इकट्ठे काम कर रहे हैं।
3. देशके अंतर्गत जितने भी कोरोनाके लिए डेजिग्नेटेड अस्पताल हैं उन्हें अब यह अनुमति मिल गई है कि यदि उनके पास आयुर्वेदकी किसी दवाई के लिए ट्रायलके प्रपोजल आते हैं तो वे अस्पताल अपने स्तरपर एक टीम बनाएं जिसमें एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों जानकार सम्मिलित हों और इस टीमकी निगरानीमें आयुर्वेदकी दवाइयोंके कंट्रोल्ड ट्रायल किए जाएं। देशमें कई डेजिग्नेटेड अस्पतालोंने इस संबंधमें अपना रुझान दर्शाया है।
४. ऐसे अस्पतालोंमें पंचगव्य, होम्योपैथी, मंत्र चिकित्सा आदि जैसे अन्य ट्रायल्स भी किए जा सकते हैं बशर्ते इन विषयोंका जानकार व्यक्ति और उस अस्पतालके विभाग प्रमुख दोनों सम्मिलित रूपसे इस बातके लिए तैयार हैं। ५. दिल्लीका एक संपूर्ण आयुर्वेदिक अस्पताल चौधरी ब्रह्मप्रकाश अस्पताल, नजफगढ भी कोरोनाके लिए डेजिग्नेट किया गया है। उस अस्पतालको यह निर्देश हैं कि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइनके अनुसार सैनिटेशन और सफाईके लिए आवश्यक सारी बातों की पूर्ति करनेके बाद रोगीको संपूर्णतया आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट दे सकते हैं।
६. चूँकि आजकी तारीखमें एलोपैथीके पास भी कोरोनाकी कोई दवाई नहीं है, इसलिए आज एलोपैथी और आयुर्वेद एक ही समतल पर खड़े हैं। ऐसी हालतमें एथिकल कन्वेंशनके अनुसार कोरोनाके रोगीके लिए दोनों तरहकी दवाइयाँ उपलब्ध कराई जा सकती हैं। इसलिए यदि पेशेंट यह कहे कि वह आयुर्वेदिक दवाइयां लेना चाहता है तो उसे इस बातके लिए मना नहीं कर सकते हैं। उसके लिए आयुर्वेदकी चिकित्सा उपलब्ध कराई जा सकती है।७. हम हजारों वर्षों से जानते हैं कि हल्दी तुलसी गिलोय अश्वगंधा इत्यादिसे इम्युनिटी बढ़ती है। लेकिन यह कई बार आवश्यक होता है कि जो बात हमें पता है उसे दोबारा जाँच लिया जाए क्योंकि देश-काल-व्यक्ति इन तीनों आयामोंसे अपने सिद्धांतोंको बीच-बीचमें एक बार परख लेना अच्छा होता है। इस बातको ध्यानमें रखते हुए आयुष मंत्रालयने ऐसे कुछ समूहोंका चुनाव किया है जिन पर यह फील्ड ट्रायल की जाएंगी कि यदि उन्होंने तुलसीका सेवन किया तो क्या उनकी रोग प्रतिकारक क्षमता बढ़ी? क्या हल्दीके सेवनसे बढी? अश्वगंधाके सेवनसे बढी? ऐसे समूहोंका चुनाव किया गया है। उदाहरण स्वरूप किसी खास इलाकेके तमाम पुलिस कर्मचारी या सफाई कर्मचारी, अस्पतालके तमाम नर्सिंग स्टाफ आदि। इस प्रकार 1000, 2000, दस-बीस हजार जैसी बड़ी संख्यामें ऐसे फील्ड-ट्रायल करवाए जा रहे हैं और उनका डाटा कैपचरिंग करके एक डेटाबेस तैयार किया जा रहा है ताकि संख्यात्मक मुद्दे जनता के सामने और विश्व के सामने रखे जा सकें।
८. अभीतक हमारे सारे प्रोटोकॉल अंग्रेजीमें ही लिखे जा रहे हैं और भारतीय दवाइयाँ, उनके द्रव्य-गुण, उनकी व्याख्या आदि हमें लॅटिन व इंग्लिशमें ही करने पड रहे हैैं लेकिन हम प्रयास करेंगे कि हम भारतीय शब्दावली और व्याख्याका उपयोग करें।
इतनी अच्छी ब्रेकिंग न्यूजके लिये आयुष मंत्रालयको बधाई। हालांकि मेरी राय होगी कि वे स्वयं न्यूज चॅनेलोंके सामने आकर ये बातें सरल हिंदी भाषामें जनताको बतायें ? चाहे वे कितनेही व्यस्त क्यों न हों, उन्हें यह करना चाहिये।
अन्तमें अपनी ओरसे बस इतना ही कि --
मंजिलें अभी दूर हैं और हमें चलते रहना है। यह लडाई केवल कोरोनाके साथ नही है, वरन भारतीय ज्ञानकी विरासतको बचा पानेकी भी लडाई है।

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