मा. खासदार,
……………………………………………………..
………………………………………………………
विषय :- राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकाका समुचित प्रचार करवानेमें सहयोग हेतु
महोदय,
स्वतंत्रताके पश्चात तत्कालीन लोकसभाके सदस्योंके विचार मंथनमें यह निर्धारित हुआ कि स्वतंत्र भारतवर्षकी एक अपनी राष्ट्रिय कालगणना पद्धति होनी चाहिये। इस कार्यके लिये मान्यवर वैज्ञानिक श्री मेघनाद साहाकी अध्यक्षतामे एक समितीका गठन किया गया।
समितीकी अनुशंसाओंके परिप्रेक्ष्यमे सौरचक्रपर आधारित राष्ट्रिय कालगणनाको संसद द्वारा स्वीकृत किया गया। स्वीकृती की जानकरी “सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय” द्वारा 1957 को प्रेषित की गई। यह स्वीकृत दिनदर्शिका 1 चैत्र 1879 (22-03-1957) से लागू कर दी गई।
राष्ट्रिय दिनदर्शिकाको राष्ट्रिय प्रतिकोंमे सम्मिलित किया गया। दैनंदिन व्यवहारमे इस दिनदर्शिकाका प्रचलन होने हेतु तत्कालीन गृहमंत्रालयद्वारा एक परिपत्र (F/42/16/57 PUB I, Dt. 11-12-57) सभी राज्य सरकारोंको तथा केंद्रशासित प्रदेशोंको प्रेषित किया गया। इस परिपत्रमे यह स्पष्ट रूपसे उल्लेखित है कि, सभी राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेशोंमे, इस दिनदर्शिकाके विषयमे जन जागृती कराई जाये तथा इसका दैनंदिन व्यवहारमे प्रयोग कराने हेतु आवश्यक कार्यवाही की जाये।
राष्ट्रिय दिनदर्शिकाका उपयोग अधिकतम मात्रामे विदेश मंत्रालयद्वारा किया जाता है। सभी अंतरराष्ट्रीय समझौतोंमे ग्रेगोरियन दिनांकके साथ राष्ट्रिय दिनांक लिखना अनिवार्य है। परन्तु दुर्भाग्यवश राष्ट्रिय दिनदर्शिकाका चलन अभीतक जनमानस के बीच नही पहुँचा है।
राष्ट्रिय दिनदर्शिका प्रसार तथा प्रचार करने हेतु वर्ष ------------------- में औरंगाबाद (महाराष्ट्र) शहरमे राष्ट्रिय दिनदर्शिका प्रसार मंचकी स्थापना की गई। संस्थाके सदस्य भारतभरमे, विशेषतः महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, प. बंगाल, आसाम, व दिल्लीमे कार्यरत है। सभी राज्योंके सदस्योंसे विचारमंथन करते हुए यह बात स्पष्टतासे सामने आयी कि राष्ट्रीय दिनदर्शिकाकी स्वीकार्यतामें कठिनाइयाँ क्यों हैं। इस कारणकी चर्चा यहाँ प्रस्तुत है।
कृषिके लिए सौर ऋतुचक्रका विशेष महत्व है, इसी लिये हमारे कई पर्व, सप्ताहके वार के आधारपर मनाये जाते हैं। इसी प्रकार पंजाब, तमिळनाडू और आसाम जैसे राज्योंमे सूर्यके राशी-संक्रमणानुसार वार्षिक कालगणना होती है। वैदिक कालखण्डमें भी सूर्य और उससे उत्पन्न ऋतुचक्रोंका महत्व ध्यानमें रखकर ऋतुओंके आधारसे बारह महीनोंके हेतु मधु-माधव-शुचि-शुक्र इस प्रकार बारह नाम प्रचलनमें थे। साथही चंद्रमाको देखकर तिथी-निर्धारण अत्यंत सुलभ होनेके कारण चांद्रपंचांगका भी महत्व है। तो चांद्रपंचांगमें नक्षत्रोंके आधारसे मासोंके नाम चैत्र-वैशाख-ज्येष्ठ आदि नियत हुए थे। कालान्तरमें चांद्रतिथीकी सुलभताके कारण ऋतु-आधारित नाम, जो वास्तवमें कृषिसंबंधी मार्गदर्शन करते हैं वे पीछे पडकर विस्मृत हो गये। प्रायः सभी धार्मिक विधियाँ चांद्र-तिथियोंसे निश्चित होने लगीं अतः चांद्रमासी तिथियाँ जनमानसमें आधारभूत हो गईं।
राष्ट्रिय दिनदर्शिका प्रसार मंचने पाया कि राष्ट्रिय सौर कॅलेण्डरमें सुझाये महीनोंकी तिथियाँ तो सौरचक्रसे चलती हैं परन्तु महीनोंके नाम वही तय किये जो धार्मिक माहके नाम हैं (चैत्र, वैशाख ..... इत्यादि) । इस प्रकार सौर व धार्मिक माह एक ही होते हुए भी तिथियाँ भिन्न होनेकी वजहसे राष्ट्रिय दिनदर्शिका तथा धार्मिक दिनदर्शिकाओंके बीच संभ्रमकी स्थिति बनती है। राष्ट्रिय कॅलेण्डरमें चैत्र ९ पढनेपर लगता है कि यह चैत्र नवमी है, परन्तु वास्तवमें उस दिन कोई अन्य तिथी होती है।
इसी संभ्रमके कारण यह दिनदर्शिका भारतवर्षके दैनंदिन व्यवहारमे प्रचलित नही हो सकी, और न हो सकेगी। केवल सरकारी परिपत्रकोंमें इसे दुय्यम स्थान प्राप्त है।
यदि हमे हमारी राष्ट्रिय दिनदर्शिकाको उचित स्थान देना है तथा दैनंदिन व्यवहारमे प्राथमिक रूपसे प्रचलित करना है तो उसका सरल सा उपाय है कि राष्ट्रिय दिनदर्शिकामें माहोंके नाम वैदिक परंपरानुसार मधु, माधव, शुक्र, शुचि..... इत्यादि रखना उचित होगा। ऐसा करनेपर राष्ट्रिय कालगणना तथा धार्मिक कालगणनामे जो संभ्रम है वह दूर हो जाएगा। इसके लिये मात्र एक छोटासा अमेंण्डमेंट बिल संसदमें पारित करनेकी आवश्यकता है। साथ हम यह भी सुझाव राखना चाहते है कि अभी राष्ट्रिय दिनदर्शिकामे शक वर्ष गिना जाता है उसे बदलकर युगाब्द गिनना आरंभ जाये, जो भारतीय संस्कृतिकी प्राचीनतम ज्ञात कालगणना है।
राष्ट्रिय दिनदर्शिका मंचका प्रसार प्रचारका कार्य निरंतर प्रगतिपथ पर है। इस राष्ट्रिय कार्यमें आपके योगदानसे यह कार्य शीघ्रगतीसे आपना ध्येय प्राप्त करेगा। आप सभीके योगदानसे राष्ट्रिय दिनदर्शिका विश्वमे अग्रेसर स्थान प्राप्त करेगी ।
इस विषयमे आपको अधिक जानकारी देने हेतु हमे आपका 30 मिनटका समय चाहिये। हमे आशा है, आप इस कार्यके लिए अपना समय देंगे ।
आपसे सहयोगकी अपेक्षामे ।
धन्यवादपूर्वक,
(.............., अध्यक्ष, राष्ट्रिय दिनदर्शिका प्रचार मंच, औरंगाबाद, महाराष्ट्र)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें