गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

जीवन व्रतके ५ नियम

 मनुष्य को सदैव न्यायपूर्वक प्राप्त  धन ही ग्रहण करना चाहिए और उसी धन से स्वयं का तथा अपने आश्रित जनो का सदैव निष्ठा पूर्वक पालन पोषण और रक्षा करनी चाहिये ।


असत्य भाषण और असत्य आश्रय  (ढोंगी पाखण्डी लोगो के संरक्षण से) से दूर रहना चाहिये तथा सामाजिक परंपरा अनुसार निंदित मार्ग का कभी भी अनुसरण नही करना चाहिये। 


द्यूत (जुआ), मद्यपान, अश्लील और अभद्र संगीत तथा दुर्गुणी स्त्रियोंं-पुरुषों (यथा चोर लुटेरा जुआरी शराबी लंपट और वेश्या स्त्री पुरुष) आदि से दूर रहना चाहिये। स्वयं भी दूर रहें और अपने आश्रित जनों को भी इनसे दूर रहने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करें ।


मूर्ख, शठ, जड़, लोभी, कामी, दंभी, ढोंगी, पाखंडी, कपटी, क्रूर, ईर्ष्यालु और हठधर्मी मनुष्यों तथा भिखारी वृत्ति बालों की (सदा दूसरों से माँगने की आदत वाले लोग और शारीरिक सामर्थ्य के वाद भी भिक्षा माँगने वाले)  की कभी संगति न करे तथा इनको भोजन (पेटभर भोजन से अधिक) के अतिरिक्त कोई भी और कुछ भी सहयोग ,सहायता और दान न दे।


कभी भी धर्म और परंपरा की मर्यादा का त्याग न करें। माता, पिता, आचार्य, विप्र, पुरोहित, गुरु, साधु, सज्जनों  और वरिष्ठ जनों का सदैव ध्यान रखे । उनका जाने -अनजाने कभी कोई अपमान न करे।


   जो मनुष्य इस प्रकार से कर्तव्य/ कर्मो और आचरण का निर्वाह और व्यवहार करते हुए अपना जीवन निर्वाह करता है वह निश्चय ही यश, कीर्ति, सुख- समृद्धि और ऐश्वर्य के साथ सुखमय जीवन का भोग कर अंततः स्वर्ग को प्राप्त होता है। 

कोई टिप्पणी नहीं: