रविवार, 21 जून 2015

नक्षत्रवन

नक्षत्रवन

 पूजन अनुष्ठान में महत्व: किसी भी पूजन अनुष्ठान में पंचपल्लव की आवश्यकता पड़ती है। मूल शांति में 27 नक्षत्रों के वृक्षों के पत्तों की आवश्यकता होती है। शारदा तिलक के अनुसार नक्षत्रों के वृक्ष - कारस्करोऽथधात्री स्यादुदुम्बरतरूः पुनः। जम्बूरवदिर कृष्णाख्यौ वंश पिप्पल संज्ञकौ।। नागरोहिणनामानौ पलाशप्लक्षसंज्ञकौ। अम्बष्ठविल्वार्णुनाख्या विकङकतमहीरूहाः।। वकुलः सरलः सर्जो वंजुलः नपसार्ककौ। शमीकदम्बनिम्बाभ्रमधूका रिक्षशारिवनः।। अर्थात कारस्कर (कुचिला) धात्री (आंवला) उदुम्बर (गूलर) जम्बू (जामुन) खदिर (खैर) कृष्ण (शीशम) वंश (बांस) पिप्पल (पीपल) नाग (नागकेसर) रोहिण (वट) पलाश, प्लख (पाकड़) अम्बष्ठ (रीठा) बिल्व, अर्जुन, विकंकत (कंटारी) वकुल (मौलश्री) सरल (चीड़) सर्ज (साल) वंजुल (सैलिक्स, जलवेतस) पनस (कटहल) अर्क (मदार) शमी, कदंब, आम्र, निम्ब, महुआ। यस्त्वेतेषामात्मजन्मक्र्षमाणां मतर्यः कुर्यादभेषजादीनमदान्धः। तस्यायुष्यं श्री कलगं च पुत्रोनश्यत्येषां वर्द्धते वर्द्धनाधै।। (राजनिघण्टु) अर्थात जो मदान्ध व्यक्ति अपने जन्म नक्षत्र वाले वृक्षों की औषधि आदि का उपयोग करते हैं, उनकी आयु, श्री, स्त्री तथा पुत्र नष्ट हो जाते हैं। अपने जन्म नक्षत्र के वृक्षों को बढ़ाने और पालन करने से आयु आदि की वृद्धि होती है। क्रम नक्षत्र देवता वृक्षों के नाम 1. अश्विनी अश्विनी कुचिला 2. भरणी यम आंवला 3. कृत्तिका अग्नि गूलर 4. रोहिणी ब्रह्म जामुन 5. मृगशिरा सोम खैर 6. आद्र्रा रुद्र शीशम 7. पुनर्वसु अदिति बांस 8. पुष्य गुरु पीपल 9. आश्लेषा सर्प नागकेसर 10. मघा पितर बरगद 11. पू. फाल्गुनी भग ढाक 12. उ. फाल्गुनी अर्यमा पाकड़ 13. हस्त सविता रीठा 14. चित्रा त्वष्टा बेल 15. स्वाति वायु अर्जुन 16. विशाखा इन्द्राग्नि विकंकत 17. अनुराधा मित्र मौलश्री 18. ज्येष्ठा इन्द्र चीड़ 19. मूल निऋति साल 20. पूर्वाषाढ़ा अप (जल) जलवेतस 21. उत्तराषाढ़ा विश्वेदेव कटहल 22. श्रवण विष्णु मदार 23. धनिष्ठा वसु शमी 24. शतभिषा वरुण कदंब 25. पू. भाद्रपद अजैकपद आम 26. उ. भाद्रपद अहिर्बुध्न्य नीम 27. रेवती पूषा महुआ
पर्यावरण संतुलन बनाए रखना आज के समय की सबसे बडी चुनौती बन गई है। जहां एक और हम औद्योगिक विकास के द्वारा आर्थिक सम्पन्नता की ओर बढ़ रहे है वहीं दूसरी ओर हम पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर अपने लिए ही समस्याएं (प्रदूषण) पैदा कर रहे है। वृक्षों का सीधा संबंध हमारे जीवन से है यदि पौधे रहेगे तो हमारा पर्यावरण शुद्ध रहेगा, पर्यावरण रहेगा तो हम रहेगे अर्थात हमारा अस्तित्व बना रहेगा। आज हमें यह निर्णय लेना है कि हम अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर न केवल पर्यावरण का संतुलन बनाएं अपितु आगे आने वाली पीढ़ी को भी प्राण वायु की व्यवस्था करें। 
हमारे प्राचीन ग्रथों में लिखा है कि अपने कल्याण की इच्छा करने वाले पुरूष को चाहिए कि वह तालाब के किनारे अथवा खाली जमीन पर अपने बुजुर्गों के नाम अच्छे बड़े छायादार और फलदार पौधे लगाएं और अपने पुत्रों की भांति उनका पालन पोषण करें । शिवपुराण में इस बात की महत्ता प्रकट करते हुए लिखा है कि आतीतानागवान सर्वानपित्र वंशास्तृ तरपोत् कान्तारे वृक्ष रोपी यस्तस्माद् वृक्षांस्तु रोपयेत। अर्थात जो वीरान एवं दुर्गम स्थनों पर वृक्ष लगाते है वे अपनी बीती व आने वाली सम्पूर्ण पीड़ियों को तार देते हैं। हमें चाहिए कि हम अपने घरों के आसपास खेतों की मेढो पर पौधे रोप सकते है। हम बडे बूढ़ो के नाम पर आम, आंवला, जामुन जैसे फलदार वृक्ष लगाएं इससे पर्यावरण शुद्धि के साथ बढ़ों को शांति व बच्चों की आयु यश विद्या में वृद्धि होगी। 
नक्षत्रवन - हमारे मनीषियों ने ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र के वृक्षों का उल्लेख शास्त्रों में किया है। जो भी व्यक्ति अपने जन्म नक्षत्र के वृक्षों (पौधों ) को रोपित करता है सींचता है उनका भरण पोषण करता है व पूजता है उसकी आयु के साथ ऐश्वर्य व धन धान्य में भी वृद्धि होती है। 27 नक्षत्रों के जो वृक्ष बताए गये है उसके अनुसार अश्वनी नक्षत्र के लिए कुचला का वृक्ष, भरनी नक्षत्र के लिए आंवला, कृतिका के लिए गूला व स्वर्णदीरी, मृगशिरा के लिए खेर, आद्रा नक्षत्र का वृक्ष बहेडा, रोहणी के लिए जामुन व तुलसी बताया गया है । इसी प्रकार पुनर्वसु नक्षत्र के लिए बांस, पुण्य नक्षत्र के लिए पीपल, अश्लेश के लिए नागकेसर, मघा के लिए बड़, पूर्वकाल्गुनी नक्षत्र के लिए ढाक (पलास) का वृक्ष, तथा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के लिए रूद्राक्ष, पाकर लगाना उपयोगी माना जाता है। 13 वे स्थान के नक्षत्र हस्त में जन्में व्यक्ति रीठा व पाढ का वृक्ष, चित्रानक्षत्र वाले बेल नारियल, स्वाती के लिए अर्जुन का वृक्ष, विशाखा नक्षत्र के लिए राजबबूर, अनुराधा नक्षत्र के लिए बकुल, मौलश्री, ज्येष्ठ नक्षत्र के लिए देवदारू व लोध का वृक्ष लगा सकते है। इसी प्रकार मूल नक्षत्र के लिए साल वृक्ष, पूर्वाषाढ़ा के लिए जलवेंत, उत्राषाढ़ा नक्षत्र के लिए फालसा लगाये। श्रवण के लिए आक लगाये,धनिष्ठा नक्षत्र के लिए शमी लगाएं शतभिषा नक्षत्र के लिए कदम्ब, पूर्वा भाद्रापदा नक्षत्र के लिए आम लगायें, उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र के लिए नीम तथा रेवती नक्षत्र के लिए महुआ का वृक्ष लगाना लाभकारी होता है। 
इस प्रकार हम भौतिक, अध्यात्मिक तथा परलौकिक लाभ प्राप्त करने के लिए वृक्षारोपण कर न केवल अपने प्रति अपितु समाज व देश के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकते है। 
राशि के अनुसार यह वृक्ष लगायें 
मेश राशि वाले आंवला का वृक्ष अपने परिसर में लगायें। वृषभ राशि वाले जामुन, मिथुन राशि वाले शीशम, कर्क राशि वाले पीपल, सिंह राशि वाले ढांक, कन्या राशि वाले रीठा, तुला राशि वाले अर्जुन, वृश्चिक राशि वाले मौलश्री, धनु राशि वाले जलवेतम, कुम्भ राशि वाले कदम और मीन राशि वाले नीम का वृक्ष लगाकर उनकी सुरक्षा करें ।


yoga is Hindu.-- article

Yoga has no Religion

 
My immediate response to the assertion that “Yoga has no religion” is a flat denial. Because I know Yoga, Yoga is a friend of mine and I can truthfully attest to the fact that Yoga does indeed have a religion. He’s a Hindu. Therefore anyone making the claim that Yoga has no religion is either ignorant or is a liar (maybe both) since it is categorically and emphatically false. Do I make myself clear?
Oh, they mean the practice of yoga, the set of physical and mental exercises that originated in India and is widely used across the world for improving physical and spiritual well-being? Well, well, then let me address that “Yoga has no religion” claim. Spoiler alert: it is a stupid, meaningless statement made by the congenitally ignorant demonstrating a mentally disabling but well-deserved inferiority complex.

“Yoga has no religion” belongs to a category of statements that are syntactically sound but semantically empty like the statement “Colorless green ideas sleep furiously.” (Briefly hold the cursor over the link for a reference. Always a good idea to do so.)
The statement is indeed well-formed and has the usual English subject-predicate structure with ‘Yoga’ as the subject and the predicate ‘has no religion.’ And unless the subject refers to a human being (real or imaginary), the statement is semantic nonsense: it is neither true nor false. Meaningful statements are either true or their converse is true. Consider the statement “Cars have no possessions.” It is meaningless because neither it nor its contradiction is true. People have possessions; inanimate objects don’t.
Cars can be possessions, however. Or a car may be abandoned and therefore have no possessor. Cars can be possessed but cars do not possess. That distinction is important and worth keeping in mind if one is interested in not coming across as an imbecile.
Yoga is a technique (I am not referring to my aforementioned friend who has a PhD in material science, not spiritual science), a way of doing or thinking about things just like modern science, or motorcycle maintenance, or psychoanalysis, or minimalism, or gymnastics, or terrorism. All of those things are not people. Only people have the capacity to understand, believe in, and profess ideologies such as a religion. Thus it is meaningful to say that James has or does not have a religion. If James is a self-identified atheist, one can truthfully assert that “James has no religion.” But saying “Material science has no religion” is revealing asininity.
A related cretinous statement to “Yoga has no religion” is “Terrorism has no religion” — usually made by the same retards. Terrorism is a technique or a strategy, not a person. A terrorist is a person. Therefore a terrorist can be said to have or not have a religion. Thus, for instance, when a terrorist asserts that he is following the commands of Allah as revealed to the prophet of Islam and preserved in the Islamic holy book the Koran, and kills innocents as he blows himself up, it makes sense to say, “the terrorist is a Muslim” but it makes no sense to say “Terrorism has no religion.”
Those statements are just plain abuse of language. One does not have to take a course ongeneral semantics or become an expert on Korzybski’s thesis to stop misuse of language. I argue for the proper use of language, and basic sanity in general.
Anyway, let’s get back to yoga — note the lower-case ‘y’. Yoga is a technique that was developed in India centuries ago, and belongs to Hinduism (and its theological off-springs such as Buddhism and Jainism) in the sense that those who created it self-identified as Hindus (regardless of whether they used the word “Hindu” or “Sanatan dharma”) and is preserved in the sacred scriptures of what is known as Hinduism. All of yoga’s ancient practitioners have been Hindus and only in modern times, have non-Hindus started using the technique. Practicing yoga does not make one a Hindu. But merely because non-Hindus or non-Indians can (and do) practice yoga does not alter the fact that yoga is a Hindu tradition and its provenance is entirely Indian.
Let me use this analogy. I love bhajans. I love Buddhist chants. I love Christian sacred music. Mozart’s “Requiem in D minor” or Bach’s “St Matthews Passion” or Handel’s “Messiah”, move me to tears. That music is absolutely, distinctly Christian. My appreciation of it does not make me a Christian, and the fact that non-Christians can relate to the music does not uproot the music from its Christian ground. Music does not have a religion but different religions have different musical traditions. Meera bhajans are Hindu; Tibetan chants are Buddhist; Gregorian chants are Roman Catholic.
Yoga is Indian and more specifically Hindu in that sense. Hindu sacred texts contain its principles; Hindus were its principal authorities; Hindus, and only Hindus, practiced it for centuries. The yoga asanas such as the Surya Namaskar are Hindu practices. The wikipedia notes, “Its origins lie in India where its large Hindu population worships Surya, the Hindu solar deity. This sequence of movements and asanas can be practised on varying levels of awareness, ranging from that of physical exercise in various styles, to a completesadhana which incorporates asanapranayamamantra and chakra meditation.”
Here’s a clue that yoga is Hindu. Only Hindus name their children Yoga or Yogananada; Christians, Muslims, Jews don’t.
Indeed, many prominent Muslim and Christian authorities have issued religious edicts prohibiting their coreligionists from doing yoga. These people are quite understandably wary of yoga — it is a Hindu practice and is more than likely to “corrupt” them. Yoga is a gateway, a mechanism, a means, a road to reaching enlightenment. Enlightenment is a uniquely Indian spiritual goal. Unlike in the Abrahamic religions which focus entirely on pleasing a monotheistic god who demands absolute, unconditional obedience, the Indic religions’ goal is liberation or moksha, the removal of the illusion that one is not the supreme being.
Spiritual advancement, not obedience to some super-big-daddy-in-the-sky, is the goal of yoga. Etymologically, yoga is a cognate of “yoke” — to unite, to bind. The idea is to yoke yourself to the ultimate principle behind the universe, the universal consciousness. Yoga is essentially about mind and its control. And if one starts with the physical bits, who knows whether one will gravitate towards the non-physical bits. And that would not be very good for the proselytizing religions.
My position on who should do yoga, who should be prohibited, who should be forced, etc, is very simple. It is in keeping with my fundamental principle: do what you will. I don’t like coercion and I do not coerce. If you want to do yoga, fine. If you don’t want to do yoga, fine. Do whatever you want to do, do it to your heart’s content but don’t coerce — in yoga or anything at all.
(You may ask, what brought on this rant. Well, wonder no more. It was this tweet:
Yoga has no religion.MPLB may have problem with Surya Namaskar but Yoga is universal. Why do they keep Muslims involved in non issues?
No sir, yoga is an integral part of Hinduism. Yes, it may be practiced universally but it is and will remain Hindu. Get used to it. I guess it sucks for you but you just have to suck it up.
[Free language lesson thrown in: "Suck it up": Idiom -- to accept whatever calamity, pain, suffering, anguish or whatever unpleasantness is occurring (and stoically endure it).]
I am not familiar with Shahid Siddiqui’s work but I have a hunch that he may have claimed “Terrorism has no religion.” I know that Manohar Parrikar did declare “terror has no religion.” Bombs have no religion too. Nor do planes, and automobiles. Come to think of it, my derrière has no religion, too. So what.
Anyhow, I may have gone ballistic on Parrikar on twitter. I will have to locate those tweets one of these days.)