बाख -- पुष्प चिकित्सा
प्रकृति आद्य शिक्षक आद्य चिकित्सक. चलें प्रकृति की ओर और करें स्वास्थ्य रक्षा. During 1991-94 I was Director of NIN (National Institute of Naturopathy) Pune under Min. of Health, GoI. First principle of Naturopathy is that you alone are responsible for your health and must learn proper ways for it. With my fervour for Ayurved, this gave another forum to educate masses about health management. Vedio clips, Audios and essays on Naturopathy can be seen on this blog.
गुरुवार, 10 नवंबर 2016
बुधवार, 9 नवंबर 2016
सोमवार, 7 नवंबर 2016
क्योटो संधि का मूल मुद्दा -- अपूर्ण
क्योटो
संधि का मूल मुद्दा
पिछले बीसेक
वर्षों से पूरे विश्व में गरमी
बढने की बाबत चिन्ता व्यक्त
की जा रही है। सूरज से हमें
गरमी और रौशनी दोनों मिले हैं।
लेकिन पृथ्वी के चतुर्दिक
फैले हुए वायुमंडल की सबसे
ऊपरी सतह में ओजोन गैस की बहुलता
के कारण गरमी की काफी बडी मात्रा
ऊपर ही सोख ली जाती है। बाकी
जो गरमी घरातल तक पहुँच पाती
है वह उतनी ही है जो हमारी
जरूरतों के लिये आवश्यक है।
हजारों वर्ष पहले पृथ्वी पर
जीवन विकास इसी गरमी के अनुरूप
हुआ था।
लेकिन उस जीवन-
विकास का
चरमोत्कर्ष अर्थात् मनुष्य,
काफी बुद्धिमान
निकला। उसने अपनी सुविधाओं
के लिये कई जोड तोड किये और
अन्त में वह स्थिती आ गई जब
मानवी क्रिया कलापों के कारण
वायुमंडलीय ओजोन लेयर को ही
खतरा पैदा हो गया। यदि ओजोन
लेयर कारगर नही रही तो सूरज
की गरमी अत्याधिक मात्रा में
घरातल तक उतरेगी जिससे
जीवन ही दूभर हो जायगा। यही
चिन्ता अब विश्वभर के वैज्ञानिक
एवं विचारवन्तों को सता रही
है।